Book Title: Pravachansaroddhar Part 1
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 23
________________ MAHARIHARIWARMIHIRAAMANANJARAMMARMAWEB-MAIHEMAMALINIMIMILAILAIMAR ARDamayananisamanmamermis s i MMISHRASTRAISEN CE । प्रवचनसारोद्धारे सटीके ॥२१॥ ५२ १३ भवंतीत्याह-पा । ५३ ८ इत्यादि पदेन-पा॥ ५३ १५ स्थापनाहंतस्तपा. ॥ ५४ ३ अन्ये पुनः शक्रस्तवफचकेन निर्मिता शक्रस्तवपञ्चक० जे.पा.॥ ५४ . सुसवृताङ्गोपाङ्गो-जे. ।। ५६ १३ वधूटकद्वयं-जे. पा.।। .५६ १४ मिलिता अष्टादशपूर्वभणितकालो केन पुरिमषट्कसहिता मुखा० पा । मिलिताष्टादशपूर्वभणितेकालोकेन परिमबट रहिता मुखाजे ०वधूटकया-पा॥ ४ तदव्यतिरेकाचवन्दनकमपि-पा। ९ क्षमणाऽपि-पा। ८ पज्जवासमाणस्स वा वजा-पा ।। १३ ०रजोहराध पधिश्यिा तथा-जे पा ॥ ७६९ समुच्छलवतुच्छतरस्फुरद० पा॥ ७६ १२ तत्र तावत् शीतलको जे पा॥ ७७ १ वैराग्यरङ्गितः-जे ॥ ७७ ४ वत्सास्त्ववीय एवंक:-जे.॥ ७. ६ एवं च फलमनाहि संसार जे. पा. | ६ संसारस्य यथाऽमुना-जे.॥ २ अवन्स्यप्रतिपातिन:-जे ॥ ५ सुराष्ट्रा मण्डले-पा. ॥ ७९ ५ द्वारवस्या० जे॥ ८० ४ मा पतन्त्वन्या-पा. जे. ॥ ९ पायनघटिका०पा सि ।। पायनाटिका सं. १ १ च तिष्ठति-पास ।। ८१ १३ हरिः । नाथ ! नेस्थमहं श्रान्तः सष्टि त्रिशतैयुधैः-पा.मु.पाठा.सं. प्रतो पार्श्वभागे चपाठः।। ८१ १३ षष्ट:-जे । षष्टिः सं. ८७ १२ 'खद्धाययण ति-सं.॥ ७१ १ स्त्रीलक्षणादीनि लक्षणानि आवि० या ॥ १५ रागद्वषमोह:-पा.॥ ७५ १० सम्यग्दृष्टेर्वा, मावत-जे.॥ ७५ १३ रजोहरणादिकर्म भावतस्तु-जे. पा. ॥

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