Book Title: Pravachansara Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रकाशकीय आचार्य कुन्दकुन्द-रचित 'प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार' हिन्दी-अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण के कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती है। __आचार्य कुन्दकुन्द-रचित उपर्युक्त कृतियों में से प्रवचनसार' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी भाषा में रचित एक रचना है। इसमें कुल 275 गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ में तीन अधिकार हैं। 1. ज्ञान-अधिकार 2. ज्ञेय-अधिकार 3. चारित्र-अधिकार। पहले ज्ञान-अधिकार में 92 गाथाएँ हैं। इसमें आत्मा और केवलज्ञान, इन्द्रिय और अतीन्द्रिय सुख, शुभ, अशुभ और शुद्ध उपयोग तथा मोहक्षय आदि का प्ररूपण है। दूसरे ज्ञेय-अधिकार में 108 गाथाएँ हैं। इसमें द्रव्य और पर्याय की अवधारणा, द्रव्यों का स्वरूप, पुद्गल के कार्य, संसारी जीव और साधना के आयाम, शुद्वोपयोग की साधना आदि का निरूपण है। तीसरे चारित्रअधिकार में 75 गाथाएँ हैं। इसमें श्रमण दीक्षा, श्रमणता का केन्द्रीय आधार परिग्रहत्याग, श्रमण के लिए प्रेरक दिशाएँ, आगम-अध्ययन एवं पदार्थों का श्रद्धान, शुभोपयोगी व शुद्धोपयोगी श्रमण आदि का निरूपण है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 144