Book Title: Pravachanasara
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 529
________________ ३६४ कुंदकुंद-विरइओ [II. 98 : २-९८98) ण चयदि जो दु ममत्तिं अहं ममेदं ति देहदविणेसु । सो सामण्णं चत्ता पडिवण्णो होदि उम्मग्गं ॥९८॥ 99) णाहं होमि परेसिं ण मे परे संति णाणमहमेको । इदि जो झायदि झाणे सो अप्पाणं हवदि झादा ॥ ९९ ।। 100) एवं णाणप्पाणं दंसणभूदं अदिदियमहत्थं । धुवमचलमणालंबं मण्णेऽहं अप्पगं सुद्धं ॥ १०० ॥ . 101) देहा वा दविणा वा मुहदुक्खा वाध सत्तमित्तजणा। जीवस्स ण संति धुवा धुवोवओगप्पगो अप्पा ॥ १०१ ॥ 102) जो एवं जाणित्ता झादि परं अप्पगं विसुद्धप्पा । सागारोऽणागारो खवेदि सो मोहदुग्गंठिं ॥ १०२ ॥ 103) जो णिहदमोहगंठी रागपदोसे खवीय सामण्णे । होजं समसुहदुक्खो सो सोक्खं अक्खयं लहदि ॥ १०३ ।। 104) जो खविदमोहकलुसो विसयविरत्तो मणो णिरुभित्ता । समवढिदो सहावे सो अप्पाणं हवदि झादा ॥ १०४ ॥ 105) णिहदघणघादिकम्मो पञ्चक्खं सवभावतञ्चण्हू । णेयंतगदो समणो झादि कमढे असंदेहो ॥ १०५॥ 106) सव्वाबाधविजुत्तो समंतसबक्खसोक्खणाणड्ढो। भूदो अक्खातीदो झादि अणक्खो परं सोक्खं ॥ १०६॥ 107) एवं जिणा जिणिंदा सिद्धा मग्गं समुट्ठिदा समणा । जादा णमोत्थु तेसिं तस्स य णिन्वाणमग्गस्स ॥ १०७॥ 108) तम्हा तह जाणित्ता अप्पाणं जाणगं सभावेण । परिवज्जामि ममत्तिं उवहिदो णिम्ममत्तम्मि ॥ १०८ ॥ 108*5) दंसणसंमुद्धाणं सम्मण्णाणोवजोगजुत्ताणं । अव्वाबाधरदाणं णमो णमो सिद्धसाहूणं ॥ १०८*५ ॥ 98) AP जहदि for चयदि, c होइ 100) CK अइंदियौं, १ मण्णेहमप्पगं सुद्धं 101) A सुहदुह for सुदुक्खा, c धुवउवओगप्पगो. 102) CK दुग्गथि(?). 103) K गंथी ?), c दिट्ठी for गठी 104) P सभावे for सहावे, A धादा for झादा 105) CK घाइ, A झायदि किम8 cण संदेहो, 106) A समत्त for समंत, P अक्खादीदो. 107) C समद्विदा. 108) K सहावेण, A तध, Kणिम्ममत्तम्हि 108*5) c रयाणं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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