Book Title: Pravachanasara
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 535
________________ ३७० कुंदकुंद-विरइओ [ III. 40 : ३-४० [III. 40 : ३40) पंचसमिदो तिगुत्तो पंचेंदियसंवुडो जिदकसाओ। दंसणणाणसमग्गो समणो सो संजदो भणिदो ॥ ४० ॥ 41) समसत्तुबंधुवग्गो समसुहदुक्खो पसंसणिदसमो । समलोढुकंचणो पुण जीविदमरणे समो समणो ॥ ४१ ॥ 42) दंसणणाणचरित्तेसु तीसु जुगवं समुढिदो जो दु । एयग्गगदो त्ति मदो सामण्णं तस्स पडिपुण्णं ॥ ४२ ॥ 43) मुज्झदि वा रज्जदि वा दुस्सदि वा दव्वमण्णमासेज्ज । जदि समणो अण्णाणी बज्झदि कम्मेहिं विविहेहिं ॥ ४३ ॥ 44) अढेसु जो ण मुज्झदि ण हि रजदि णेव दोसमुवयादि । समणो जदि सो णियदं खवेदि कम्माणि विविहाणि ॥ ४४ ॥ 45) समणा मुद्धवजुत्ता सुहोवजुत्ता य होति समयम्हि । तेसु वि सुद्धवजुत्ता अणासवा सासवा सेसा ॥ ४५ ॥ 46) अरहंतादिसु भत्ती वच्छलदा पवयणाभिजुत्तेसु । विज्जदि जदि सामण्णे सा मुहजुत्ता भवे चरिया ॥ ४६॥ 47) बंदणणमंसणेहिं अब्भुट्ठाणाणुगमणपडिवत्ती । समणेसु समावणओ ण णिदिदा रायचरियम्हि ॥ ४७ ॥ 48) दंसणणाणुवदेसो सिस्सग्गहणं च पोसणं तेसिं । चरिया हि सरागाणं जिणिंदपूजोवदेसो य ॥४८॥ 49) उवकुणदि जो वि णिचं चादुव्वण्णस्स समणसंघस्स । कायविराधणरहिदं सो वि सरागप्पधाणो से ॥ ४९ ॥ 50) जदि कुणदि कायखेदं वेज्जावच्चत्थमुज्जदो समणो।। __ण हवदि हवदि अगारी धम्मो सो सावयाणं से ॥ ५० ॥ 51) जोण्हाणं णिरवेक्खं सागारणगारचरियजुत्ताणं । अणुकंपयोवयारं कुव्बदु लेवो जदि वि अप्पो ॥ ५१ ॥ 40) CK जिय. 41) P समबंधुसत्तुवग्गो, C लेट्छ, K लेंड, CK विय for पुणो, K जीविय, P सवणे for समणो. 42) A युगवं, A परिपुण्णं. 44) A अत्थेसु, AP विविधाणि, CK विविहाणि कम्माणि. 45) CKP संति for होति. 46) CK हवे for भवे 47) A वंदणणमंसणेण हि, CK राग. 48) A जिणेंद. 49) GP चाउवण्णस्स. P कायविराहण, CP पहाणो, P सो for the final से (also in the next gatha). 511 सायारणयार', अणुकंपाउवयार, A जदि वि अप्पं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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