Book Title: Pravachanasara
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 543
________________ प्रवचनसारः अमृतचन्द्राचार्यटीकान्तर्गतानां स्वरचितानामु कानां च पद्यानां वर्णानुक्रमसूची १६२ २४५ २०७ ३३० पृष्ठाका आत्मा धर्मः स्वयमिति ... ... .... १०५ आनन्दामृतपूरनिर्भर ... ... इति गदितमनीचैः ... ... इत्याध्यास्य शुभोपयोग ... ३३० इत्युच्छेदात्परपरिणतेः ... इत्येवं चरणं पुराणपुरुषः २९० इत्येवं प्रतिपत्तुराशय ... जानमप्येष विश्वं ... जावदिया वयणवहा ३४१ कर्मकाण्ड, ८९४. जैन ज्ञानं ज्ञेयतत्त्व ज्ञेयीकुर्वन्मजसा ... णिद्धस्स णिद्धेण ... जीवकाण्ड, ६१४. णिद्धा गिद्धेण ... ... जीवकाण्ड, ६१२. तन्त्रस्यास्य शिखण्डि द्रव्यसामान्यविज्ञान ... १६२ द्रव्यस्य सिद्धौ चरणस्य २४६ द्रव्याणुसारि चरणं द्रव्यान्तरव्यतिकरा ... १६१ निश्चित्यात्मन्यधिकृत १०६ परमानन्दसुधारस ... परसमयाणं वयणं... ३४१ कर्मकाण्ड, ८९५. वक्तव्यमेव किल... व्याख्येयं किल ... ... ... सर्वव्याप्येकचिद्रूप... ... ... ...। स्यात्कारश्री ... ३४१ हेलोल्लुप्तं महामोह * The verses marked with asterisk alone are quotations, and the rest are all composed by Amộtacandra in various contexts in his commentary. The manner in which the verse anandāmita etc. is introduced perhaps indicates that it is a quotation. २१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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