Book Title: Pravachanasara
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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३६८
कुंदकुंद-विरइओ [III. 24*13 : ३-२४*१३24*13) जदि दंसणेण सुद्धा मुत्तज्झयणेण चावि संजुत्ता।
घोरं चरदि व चरियं इत्थिस्स ण णिज्जरा भणिदा ॥ २४*१३ ॥ 24*14) तम्हा तं पडिरूवं लिंगं तासि जिणेहिं णिद्दिडं ।
कुलरूववओजुत्ता समणीओ तस्समाचारा ॥ २४*१४ ॥ 24*15) वण्णेसु तीसु एको कल्लाणंगो तवोसहो वयसा।
'मुसहो कुंछारहिदो लिंगग्गहणे हवदि जोग्गो ॥ २४*१५ ॥ 24*16) जो रयणत्तयणासो सो भंगो जिणवरेहि णिट्ठिो ।
सेसं भंगेण पुणो ण होदिःसल्लेहणाअरिहो ॥ २४*१६ ॥ 25) उवयरणं जिणमग्गे लिंगं जहजादरूवमिदि भणिदं ।
गुरुवयणं पि य विणओ मुत्तज्झयणं च णिदिदं ॥ २५ ॥ 26) इहलोगणिरावेक्खो अप्पडिबद्धो परम्मि लोयम्हि ।
जुत्ताहारविहारो रहिदकसाओ हवे समणो ॥ २६ ॥ 26*17) कोहादिएहि चउहि वि विकहाहि तहिंदियाणमत्थेहिं ।।
___समणो हवदि पमत्तो उवजुत्तो णेहणिदाहि ॥ २६*१७ ।। 27) जस्स अणेसणमप्पा तं पि तवो तप्पडिच्छगा समणा ।
अण्णं भिक्खमणेसणमध ते समणा अणाहारा ॥ २७ ॥ 28) केवलदेहो समणो देहे वि ममत्तरहिदपरिकम्मा ।
आजुत्तो तं तवसा अणिगृहिय अप्पणो सत्तिं ॥ २८ ॥ 29) एकं खलु तं भत्तं अप्पडिपुण्णोदरं जहालद्धं ।
__ चरणं भिक्खेण दिवा ण रसावेक्खं ण मधुमंसं ॥ २९ ॥ 29*18) पक्केमु अ आमेसु अ विपञ्चमाणासु मंसपेसीसु ।
संतत्तियमुववादो तज्जादीणं णिगोदाणं ॥ २९*१८ ।। 29*19) जो पक्कमपकं वा पेसीं मंसस्स खादि फासदि वा।
सो किल णिहणदि पिंडं जीवाणमणेगकोडीणं ॥ २९*१९ ॥ 24*13) P दसणंहि for दंसणेण, c भणिया. 24*14) P तप्पडिरूवं, c वयो'. 24*16) c सेसन्भंगेण, c होइ. 25) c विणयं, AP पण्णत्तं for णिद्दिलं. 26) c लोय, P सवणो 26*17) CP कोधादिएहि चदुहि
पहि. 27) A तओ for तवो, CK मह 28) A देहो ण ममेत्ति रहिदपरिकम्मे, P देहेण(? ममत्ति
कम्मो, CK रहिब, A अणिगृहं for अणिगृहिय. 29) AC जधा, CK मह 29*18) c पेसेसु, P सातत्तिय for संतत्तिय. 29*19) CP किर for किल, c णिहणइ.
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