Book Title: Pratyek Tattva Chintamani
Author(s): Sadanand Vidvat
Publisher: Achyut Granthmala

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Page 13
________________ श्रवणलक्षणम् मननलक्षणम् निदिध्यासनलक्षणम् मनननिदिध्यासनयोः फलम् सोपपत्तिकं श्रवणस्य प्राधान्यम् मननध्यानयोस्तदङ्गत्वम् ( ∈ ) ज्ञानस्य क्वचिददृष्टजन्यत्वेऽपि सम्प्रदायविरोधः श्रवणविधिस्वीकारे मननश्रवणादीनां समुदितानां फलम् ब्रह्म ैक्याकारवृत्तेर्नित्यत्वमनित्यत्वं वेति शङ्का तत्परिहारश्च प्रत्यगभिन्नस्य ब्रह्मण एव अज्ञानतत्कार्यनिवर्त्तकत्वम्... श्रवणे पुराणस्यापि सम्मतिः श्रवणे विधिर्न सम्भवतीति पूर्वपक्षरूपेण आक्षेपः विध्यसम्भवप्रदर्शनायैव विकल्पद्वयम् तत्र अपूर्वविधिपरिहारः तत्रोपपत्तिः परिसंख्याविधि परिहार: व्यतिरेकाभावात् नियमविधेरपि परिहारः तत्रोपपत्तिः व्यतिरेकाभावात् नियमविधेरपि परिहार: व्यतिरेकाभावोपपादनम् परत्वञ्चेति वाक्यभेदः पूर्वपक्षोपसंहारः श्रवणे विधेः कैमुत्येन साधनम् अध्ययनवत् श्रवणेऽपि कल्पकसाम्यकथनम् : : ... ... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ... ... वेदान्तानां विधिपरत्वं ब्रह्म 844 ⠀⠀ : : : ... :: ... ... ... पृष्ठ ६२ ६२ ८३ ८३ ८३ ८३ ६५ ६ ६६ ६६ ६ ६७ ६७ ६७ हद ६८ ६८ €€ €€ हर्ट १०० १०० १०० www.umaragyanbhandar.com

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