Book Title: Pratyek Tattva Chintamani
Author(s): Sadanand Vidvat
Publisher: Achyut Granthmala
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ब्रह्मज्ञानस्यादृष्टजन्यत्वम् यथा वेदाध्ययने स्मृत्युक्तप्रत्यवायान्यथानुपपत्तेरपि तत्क
ल्पकत्वं तथा श्रवणेऽपि प्रत्यवायस्मृत्यन्यथानुपपत्ति
स्तत्कल्पिकास्त्विति साम्येन समाधानम् । नियमविध्यसम्भवशङ्का तत्समाधानम् प्रकारान्तरेऽपि साम्यम् सम्प्रदायविरोधपरिहारः ज्ञाने विधेर्निराकरणे कारणम् ... श्रवणे विधिस्वीकारे दोषाभाव: उपक्रमोपसंहाराभ्यां तत्त्वप्रतिपादनपरे वेदान्तवाक्ये -
वान्तरवाक्यैः श्रवणादिविधानं किमर्थ इत्या.
शङ्क्य, द्विधा विकल्प्य, समाधानम् अथ प्राभाकराणामपरितोष: स्यादिति प्रकारान्तरसमा
श्रयणम् तेनापि तेषामपरितोष प्रकारान्तरम् 'तस्माद् ब्राह्मण: पाण्डित्यम्' इति वाक्यस्य श्रवणविधा
यकत्वम् तत्र शङ्का समाधिश्च पुनरपि तस्यैव स्पष्टीकरणम् श्रवणविधेरुपसंहारः श्रवणविधिप्रतिपादनफलम् प्रात्मविद्याया: संसारबन्धनिराकरणहेतुत्वम् प्रमातृत्वादिभ्रमस्य आत्माविद्याविवर्त्तत्वम् प्रथममात्मनि अहङ्काराध्यास: ....
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