Book Title: Pratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan Author(s): Nathulal Jain Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti View full book textPage 3
________________ प्रतिष्ठा प्रदीप श्री दिगम्बर जैन प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधान नाथूलाल जैन, शास्त्री न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, सिद्धान्ताचार्य, जैन सिद्धान्त महोदधि, संहितासूरि, प्रतिष्ठा दिवाकर पूर्व प्राचार्य सर हुकमचन्द दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, जॅवरीबाग, इन्दौर पंचकल्याणक प्रतिष्ठाविधि, समुद्र के समान गंभीर एवं अगाध है और सर्वसाधारण के लिए सूक्ष्म, अगम्य एवं गूढ़ है। जैसे समुद्र का जल स्वयं समुद्र से ग्रहण करने से खारा ही मिलता है। परंतु वही जल मेघ के द्वारा प्राप्त होता है तो मधुर (मीठा) होता है। उसी तरह मनमाने प्रतिष्ठा-पाठ ग्रंथों को अपने आप पढ़ कर उसका मनमाने विधि-विधान करने पर वह खारे जल के समान ही अग्राह्य होगा। जैसे मेघ के द्वारा आनीत वही जल मधुर होता है, उसी तरह परिपक्व ज्ञानी विद्वानों से या आचार्य परंपरा से अधीत आगम-सम्मत प्रतिष्ठा-पाठ ही ग्राह्य एवं उपयोगी होगा। -आचार्य विद्यानन्द वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति गोम्मटगिरि, इन्दौर-४५२ ००१ (म.प्र.) श्रमण संस्कृति विद्यावर्द्धन ट्रस्ट इन्दौर-४५२ ००४ (म.प्र.) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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