Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Vimal Prakashan Trust Ahmedabad

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Page 256
________________ २४३. जैसे भ्रमर प्रफुल्लित मालती को नहीं छोड़ता जैसे हाथी मनोहर रेवा नदी को नहीं छोड़ता जैसे कोयल वसंत ऋतु में सुन्दर आम्रवृक्ष की डाली को महीं छोड़ती और जैसे स्वर्गपति इन्द्र चन्दन वृक्षों से सुन्दर ऐसी नंदनवन की भूमि को नहीं छोड़ता, वैसे ही मैं तीर्थंकर भगवंत को प्रतिमा को अपने हृदय से पलभर भी दूर नहीं करता । (४) मोहोद्दामदवानलप्रशमने पाथोदवृष्टिः शमस्रोतानिरिणी समीहितविधौ कल्पद्रुवल्लिः सताम् । संसारप्रबलान्धकारमथने, मातंडचंडद्युतिजर्नीमूर्तिरुपास्यतां शिवसुखे भव्याः पिपासास्ति चेत् ॥ ... हे भव्य प्राणियो ! जो तुम्हें मोक्ष सुख प्राप्त करने की इच्छा हो तो तुम श्री तीर्थंकर भगवान् की प्रतिमा की उपासना करो, जो प्रतिभा मोहरूपी दावानल को शान्त करने में मेघवृष्टि रूप है, जो समता रूप प्रवाह देने के लिये नदी है, जो सत्पुरुषों को वांछित देने में कल्पलता है और जो संसार रूपी उन अंधकार को नाश करने में सूर्य की तीव्र प्रभारूप है । (६) दर्श दर्शमवापमव्ययमुदं विद्योतमाना लसद्विश्वास प्रतिमामकेन रहित! स्वां ते सदानन्द ! याम् ! साधत्ते स्वरसप्रसृत्वरगुरणस्थानोचितामानमद्विश्वा संप्रति मामके नरहित ! स्वान्ते सदानं दयाम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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