Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Vimal Prakashan Trust Ahmedabad

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Page 280
________________ २६७ बुद्धि की खान प्राचीन महर्षि प्रणव जैसे, एक ही संकेत को तैयार कर रुक नहीं गये, परन्तु बुद्धि से असंख्य भेद वाले मनुष्यों को देखकर, इन सबको ज्ञान के मार्ग में प्राकर्षित करने के लिए सैंकड़ों संकेतों को तैयार करने में प्रयत्नशोल बने हैं और संकेत बनाने के, उनके प्रबल प्रयास के परिणामस्वरूप हो, असंख्य भेद वाली अक्षरादि की तथा पाषाणादि की मूर्तियाँ दिखाई देती हैं। - 'मूर्तियाँ ईश्वर के स्वरूप अथवा ज्ञान के गम्भीर रहस्यों को न समझने से निकली है, अथवा प्राचीन काल के मनुष्यों की बुद्धि बाल्यावस्था में थी, उस समय निकली है",-ऐसा नहीं है परन्तु ईश्वर के स्वरूप को एवं ज्ञान के गहन रहस्यों को समझने के बाद ही बुद्धि की प्रौढ अवस्था में से निकली हैं। यह बात सत्य है कि आज मूर्तियाँ रही हैं पर इन मूर्तियों से सूचित होने वाले रहस्य को हूँढ निकालने की कला का अधिकांश लोप हो गया है। पर इसमें मतियों का क्या दोष कि उनका खंडन किया जाय ? किसी गूढ़ भाषा में लिखित ग्रन्थ अपने अज्ञान से हमको समझ में न आवे तो उसके लिये उस भाषा को समझने का प्रयत्न करना अधिक उचित है या उन ग्रन्थों का ढेर बनाकर उनकी होली जलाना ? ग्रन्थों में अक्षरों एवं शब्दों के माध्यम से ज्ञान को प्रकाशित किया गया है और मूर्तियों में उनकी प्राकृति आदि के द्वारा । पर दोनों ही ज्ञान के सूचक संकेत हैं। एक दृष्टि से मूर्ति, ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक ऊँचे अनुभव ज्ञान का प्रतीक है। मूर्ति का विधि पूर्वक उपयोग करने वाला इस बात को अच्छी तरह जान सकता है। तो फिर ग्रन्थों को, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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