Book Title: Pratima Poojan
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Vimal Prakashan Trust Ahmedabad

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Page 269
________________ प्रतिमा-पूजन - - - मूर्ति पूजा सम्बंधी एक जैनेतर विद्वान् के मननीय विचार ज्ञान, यह प्रात्मा का सहसिद्ध धर्म है। संसारी आत्माओं का यह ज्ञान मोह से ढका हुआ होता है। मोहाच्छादित ज्ञान को शास्त्रों में ज्ञानाभास के रूप में प्रतिपादित किया गया है। इसमें ज्ञान नहीं पर ज्ञान जैसा ही आभासमात्र होता है । ऐसे ज्ञान से इस जगत् में अनेक बुरी कल्पनाएँ पैदा होती हैं। अनेक प्रभागे जीव इन कुकल्पनाओं के शिकार बन जाते हैं। कुकल्पना के भ्रमजाल से बचने का एक ही रास्ता है और वह है, मोहरहित महात्मानों के ज्ञान और वचन का आश्रय लेना । इसके सिवाय उससे बचा नहीं जा सकता।। ऐसा ही एक मत, इस जगत् में, अज्ञानवादियों का है। उनका कहना है कि ज्ञान से ही सारा कलह उत्पन्न होता है । ज्ञान "प्राप्ति का प्रयास इस जगत् में जहाँ तक नहीं रुकता वहाँ तक -दुःख का अंत नहीं आता। इस प्रकार सम्पूर्ण ज्ञान की जड़ -खोदने का प्रयास किया जाता है, परंतु ऐसा करते अनजाने भी उनके द्वारा ज्ञान का समर्थन हो जाता है । इसका कारण यह है "कि, ज्ञान अनर्थ का मूल है," उनके इस प्रतिपादन का जन्म भी ज्ञान से ही हुआ है। यदि वह भी अज्ञान से उत्पन्न हुना होता तो उनको भी मान्य नहीं हो सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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