Book Title: Pramey Ratnamala
Author(s): Anantvirya Shrimad
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 91
________________ आभार। श्रीमान् सेठ नाथारंगजी गांधी द्वारा प्रकाशित संस्करण परसे हमने इमे प्रकाशित किया है । और श्रीयुक्त पंडित दरबारीलालजी न्यायतीर्थने इसका प्रूफ संशोधन करनेका कष्ट उठाया है। इसलिये - हम इन दोनों महानुभावोंके आभारी हैं। प्रकाशक । ano allo पाठ्य ग्रंथ । ... .. जैन सिद्धान्त । न्याय। गोमट्टसार-जीवकांड-सार्थ छपता है। अष्टसहस्री गोमट्टसार-कर्मकांड-साथै, आप्तपरीक्षा-मूल), सार्थ ।) जैनसिद्धांत प्रवेशिका आप्तपरीक्षा-सटीक छपती है। तत्वार्थराजबार्तिकालंकार-सटीक आप्तमीमांसा-मूल), भाषा ॥४) तत्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार-सटीक आप्तमीमांसा-प्रमाणपरीक्षा-सटीक १) तत्वार्थसूत्र ( मोक्षशास्त्र)-सार्थ ॥) द्रव्यानुयोगतर्कणा द्रव्यसंग्रह-सान्वयार्थ।), विस्तृत अर्थ॥) परीक्षामुख -सार्थ बृहद्रव्यसंग्रह-सटीक, सभाष्य ) प्रमेयरत्नमाला-संस्कृत ॥), भषा १) पंचाध्यायी-मूल॥). विस्तृत भाष्य ५॥) प्रमेयकमलमातह पुरुषार्थसिद्धयुपाय-सान्वयार्थ सप्तभंगीतरंगिणी-सार्थ १) पुरुषार्थसिद्धयुगय-विस्तृत भाष्य ।) व्याकरण। रत्नकरंडश्रावकाचार-सान्वयार्थ ) कातंत्र पंव संवि-सार्थ । रत्नकरंडश्रावकाचार-सटीक २) कातंत्ररूपमाला-पूर्षि छपता है सर्वार्थासेद्धि-मल २), सार्थ प्र० खंड ६) जैनेन्द्रप्रक्रिया-पं०' बंशीधरजो. २) समयप्राभृत-दो सं० टीकासंयुक ३॥)। जैनेन्द्रलघु वृत्तिः-पं० राज कुमार १) त्रिलोकसार-सटीक १॥),भाषाटीका ५॥) जैनेन्द्र पंचाध्यायी-मूलसूत्र पाठः ।) هتد د

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