Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 12
________________ वैयाकरणोए शब्दशास्त्रनी दृष्टिए प्राकृतना प्रण प्रकार मणाषेला छः .१ संस्कृतजन्यप्राकृत, २ संस्कृतसमप्राकृत अने. ३ देश्यप्राकृत. १ जेनी व्युत्पत्तिनो वधारे संबंध बन्ने प्रकारना संस्कृत साथे छे ते संस्कृतजन्यप्राकृत. २ संस्कृतनी जेवु प्राकृत ते समसंस्कृतप्राकृत. नीचेना एक अश्लोक द्वारा संस्कृतसमप्राकृतनो परिचय थई जाय छे. " चारुसमीरणरमणे हरिणकलङ्ककिरणावलीसविलासा । आबद्धराममोहा वेलमूले विभावरी परिहीणा" ॥ १ ॥ . (भट्टिकाव्य १३ मो सर्ग) ३ देश्यप्राकृतनो नमूनो आ प्रमाणे छ : " रे खेआलुअ खोसल इमाण खोट्टीण मज्झमावडिओ। छुट्टिस्ससि कह व तुमं अकुट्टिओ टक्कराहि फुड " ॥ (देशीनाममाला पृ. ९८ श्लो० ६५ ] प्रस्तुत व्याकरण पेला प्रकारने लगतुं छे. बीजो प्रकार तो संस्कृत व्याकरणथी ज सिद्ध छे अने त्रीजा प्रकारचें प्राकृत हजु सुधी शास्त्रीय गवेषणानो विषय न बनेलं होवाथी आमां तेनुं निरूपण करवू योग्य धार्यु नथी. एना बोध माटे देशीनाममाला वगेरे देशी भाषाना कोशोथी न चलावी लेवु पडे एम छे. ३ अर्धमागधी भाषा प्राकृत, शौरसेनी वगेरे भाषाओगें व्याकरण लखतां आमां क्यांय अर्धमागधी विषे लखवामां नथी आन्यु, एथी कोइ एम तो न ज समनी ल्ये के, अर्धमागधी कोई भाषा ज नथी. * भट्टिकाव्यना आ सर्गमां समसंस्कृतप्राकृतनां आवां अनेक काव्यो छे, आ सर्गनुं नाम ज ' भाषासंनिवेश' छे,

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