Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 10
________________ संयुक्तनी पूर्वे ह्रस्व ( जूओ पृ० ४ नि० १ ) रोदसिप्रा ( रोदसीप्रा ) L 1 6 'द 'नो 'ड अमत्र ऋ' नो ' उ ( अमात्र ) ' ( जूओ पृ० ७ नि० ८ ) वुन्द ( वृन्द ) 3 ( जूओ पृ० ६८-६९ द - विकार ) दुदभ, दूडभ पुरोदाश, पुरोडाश वगेरे. उपर्युक्त उदाहरणोनां वैदिक स्थळो माटे अने विशेष उदाहरणो माटे जूओ आर्यविद्याव्याख्यानमाळा पृ० २०३ थी २०८ ] पण पुस्तक वधी जाय अने प्रवेश करनारने कठण लागे एथी ए बधा नियमोने अहीं नथी आपवामां आव्या. (३) आदेशो करवा करतां मूळ शब्द उपरथी ज विकृत शब्दने बताववो जूना वैयाकरणोए संस्कृत शब्दोना आदेशो करीने प्राकृत शब्दो बनाववानी रीत स्वीकारी छे पण भाषानुं ऐतिहासिक अने शास्त्रीय दृष्टिए निरूपण कर होय तो जे जे शब्दोनी सरखामणी करी शकाती होय त्यां आदेशो करवा करतां ए मूळ शब्दोना ज उच्चारणजन्य वर्णविकारोने बताववा जोइए. जेम के; ' ' ओळ ' सूचक प्राकृत ' ओलि शब्दनी साधना माटे नका, आळस, निरर्थक, प्रामाणिक, वींछी, मधमाखी, सखी, श्रेणि, लींटो, पुल, डक्को अने कुल एटला अर्थमा (अर्थो माटे जुओ आप्टेनो कोश ) वपराता ' आलि' शब्द उपरथी ' पंक्ति' अर्थमां ' ओलि' बनाववानी भलामण करवी ए करतां ' पंक्ति' अर्थवाळा

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