Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 11
________________ ज आवलि' शब्दना : आउलि ' 'ओलि' रूपो बतावीने . । ओलि' शब्द बनाववानी रीत ऐतिहासिक अने भाषाशास्त्रनी दृष्टिए वधारे मुसंगत लागे छे. सक्ष्म ' ना 'ऊ' नो 'अ' करीने सह ' रूप बनाववा करतां ' श्लक्ष्ण' नुं सहन भावे थतुं 'सह ' रूप ज अधिक संगत लागे छे. आम करवाथी उच्चारणोथी थता क्रमिक वर्णविकारो कळी शकाय छे अने व्याकरणमा आवतो गौरवदोष पण अटकी शके छे. ___ आ हकीकत अहीं मात्र एक उदाहरण द्वारा ज दविवामां आवी छे ( जओ पृ० ५४) (४) आगमोनां नहि सघाएलां रूपोनी साधना जैन आगमोना केटलांक रूपो जे अत्यार सुधी अणसाध्या हतां तेने पालिभाषानां रूपो द्वारा साधवानो प्रयत्न करवामां आव्यो छे (जूओ पृ० १३६ अने २६४) २ प्राकृतभाषा शौरसेनी अने मागधीन क्षेत्र एना नाम उपरथी ज जाणितुं छे. पैशाचीन क्षेत्र-- " पाण्ड्य केकय-बाल्हीक-सिंह-नेपाल-कुन्तलाः । सुधेष्ण-भोज--गान्धार-हैव-कन्नोजनास्तथा ॥ एते पिशाचदेशाः स्युस्तद्देश्यस्तद्गणो भवेत् "। ( षड्भाषाचंद्रिका पृ० ४ श्लो० २९-३०) - आ श्लोकमां जणावेलुं छे. साधारण प्राकृत अने अपभ्रंशन क्षेत्र व्यापक छे एटले ए माटे कोई देशने निर्देशी शकाय नहि.

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