Book Title: Prakrit Tatha Anya Bharatiya Bhashaye Author(s): Premsuman Jain Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf View full book textPage 8
________________ प्राकृत तथा अन्य भारतीय भाषाएँ २९१ ( ३ ) अकारण अनुनासिक प्रवृत्ति का पाया जाना । यथा-गाम-गांव, महिषीभइंस । (४) विभिन्न वर्गों के स्थान पर दूसरे वर्णों का प्रयोग । यथा-शकुन-सगुन, किस्सा-खिस्सा, केला-केरा। भोजपुरी भाषा में ध्वनितत्त्व के अतिरिक्त व्याकरण की दृष्टि से भी प्राकृत की प्रवृत्तियां पायी जाती हैं। भोजपुरी के संज्ञारूपों की रचना पर प्राकृत का स्पष्ट प्रभाव है तथा विभक्ति-लोप के साथ परसों का प्रयोग अपभ्रंश के प्रभाव से इसमें आया है। षष्ठी विभक्ति में भोजपुरी में जो परसर्ग जोड़े जाते हैं, वे प्राकृत के हैं। यथा उनकरा काम भी करत अइव । तोहरा काम से हम अलग रहिता । यहाँ करा और हरा क्रमशः प्राकृत की कर धातु और अम्हारा आदि शब्दों से आये प्रतीत होते हैं। भोजपुरी के सर्वनामों का प्राकृत से सीधा सम्बन्ध है। वैकल्पिक रूपों का पाया जाना प्राकृत की ही प्रवृति है । कुछ सर्वनाम दृष्टव्य हैं प्रा०-मए तु तुम्ह तुम्हाण अप्पाणं । भो०-मयं तु तहें तोहनी अपने। भोजपुरी भाषा की क्रियाओं में भी प्राकृत के तत्त्व उपलब्ध हैं। अधिकांश धातुओं का मूल प्राकृत धातुएं हैं। यथा-कूटे >कुट्ट, काढ़ > कड्ढ, चुकरचुक्क, डूब > डुब्ब, सीझ सिज्झ, आदि । भोजपुरी में प्राकृत के समान ही वर्तमान, भूत, भविष्यत्, आज्ञाविधि और संभावना ये पांच काल होते हैं। भोजपुरी की क्रियाएं प्राकृत की भाँति ही सरल हैं । प्राकृत के अनेक शब्द भोजपुरी में स्वीकार कर लिये गये हैं। कुछ शब्द प्राकृत के प्रत्ययों को जोड़कर बनाये गये हैं तथा कुछ शब्द सीधे ले लिये गये हैं। यथाभोजपुरी प्राकृत का प्रत्यय इनकरा इन + करा गमइ गम+इ इल्ल घरेलु घर + एलु आल ईहां हि हा मझिला. मज्झिल्ल+आक इल्लअ केर परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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