Book Title: Prakrit Tatha Anya Bharatiya Bhashaye Author(s): Premsuman Jain Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf View full book textPage 1
________________ प्राकृत तथा अन्य भारतीय भाषाएँ डॉ० प्रेमसुमन जैन प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल में जो भाषाएं प्रचलित थीं उनके रूप ऋग्वेद की ऋचाओं में उपलब्ध होते हैं। अतः वैदिक भाषा ही प्राचीन भारतीय आर्य भाषा है। वैदिक युग की भाषा में तत्कालीन प्रदेश विशेषों की लोक-भाषा के कुछ रूप भी प्राप्त होते हैं -विशेषकर अथर्ववेद की भाषा में । इससे स्पष्ट है कि वैदिक भाषा के अतिरिक्त उस समय बोलचाल की भी कोई भाषा रही होगी। इसी कथ्य जनभाषा से धीरे-धीरे वैदिक साहित्य की भाषा, जिसे छांदस् कहा गया है, विकसित हुई है । वैदिक भाषा में प्राकृत भाषा के तत्त्वों के समावेश से यह बात स्पष्ट हो जाती है। जिन लोकभाषाओं से वैदिक युग समृद्ध था, उन्हें तीन भागों में विभक्त किया गया है-(१) उदीच्य या उत्तरीय विभाषा, (२) मध्यदेशीय विभाषा और (३) प्राच्या या पूर्वीय विभाषा । इनमें से प्राच्या देश्य भाषा उन लोगों द्वारा प्रयुक्त होती थी, जो वैदिक संस्कृति से भिन्न विचार वाले थे। इन्हें व्रात्य कहा गया है । इस प्रकार छांदस् और प्राच्य विभाषा से जो भाषा विकसित हुई उसे भगवान् महावीर के समय में मागधी नाम से जाना गया है। इस प्रकार विकास की दृष्टि से प्राकृत और संस्कृत दोनों सहोदरा हैं। एक हो स्रोत जनभाषा से दोनों उद्भूत है। क्रमशः इन भाषाओं का साहित्य धामिक एवं विधा की दृष्टि से भिन्न होता गया। अतः इनके स्वरूप में भी स्पष्ट भेद हो गये। संस्कृत नियमबद्ध हो जाने से एक ही नाम से व्यवहृत होती रही। वह देव भाषा हो गयी । प्राकृत में निरन्तर लोकभाषा के शब्दों का समावेश होता रहता था। अतः वह रही तो प्राकृत, किन्तु नाम नये-नये धारण करती रही। पालि, अर्घमागधी, महाराष्ट्री, शौरसेनी, पैशाची, अपभ्रंश आदि से गुजरती हुई प्राकृत भारतीय आधुनिक भाषाओं तक पहुंची है। __भारतीय आधुनिक भाषाओं और प्राकृत के सम्बन्ध को स्पष्ट करने के पूर्व प्राकृत के अर्थ को जान लेना आवश्यक है। प्राचीन विद्वान् नमिसाधु ने प्राकृत शब्द की व्याख्या को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार प्राकृत शब्द का अर्थ है- व्याकरण आदि संस्कारों से रहित लोगों का स्वाभाविक वचन-व्यापार । उससे उत्पन्न अथवा वही वचन-व्यापार प्राकृत है। प्राकृत पद से प्राकृत शब्द बना है, जिसका अर्थ हैपहिले किया गया। जैनधर्म के द्वादशांग ग्रन्थों में ग्यारह अंग ग्रन्थ पहिले किये गये हैं। अतः उनकी भाषा प्राकृत है, जो बालक, महिला आदि सभी को सुबोध है। इसी परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 17