Book Title: Prakrit Rupmala
Author(s): Kasturvijay
Publisher: Vadilal Bapulal Shah
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परमोपकारी पूज्यपाद सद्गुरु श्रीमद् विजयनेमिसरी..
श्वरेभ्यो नमो नमः
॥प्रस्तावना ॥ 1 ** **
( शार्दूलविक्रीडित छंद) जेनो उत्तम बोध शोध करतो भाषातणा तत्त्वनी, एकी साथ प्रशंसना मतिधनो जेना करे सत्वनी; पाम्यो हुं श्रुतबोध योग विधिने जेना प्रसादे करी, :. वंदु 'श्रीगुरु नेमिसूरि' चरणे ते उपकारो स्मरी ॥१॥ गुणग्राहो प्राकृतभाषारसिक सुज्ञो !
दरेक भाषानो विकास साधनना विकास उपर आधार राखे छे, तेज न्याये प्राकृतभाषामाटे. पण तेना साधनविकासनी आवश्यकता छ, ते दरेक कोइने सुविदितम छे.. .
प्राकृतभाषा पण संस्कृतभाषानी जेम अनेक शास्त्रोमा विशेष प्रचार पामेली छे.
ए तो अवश्य कहेवून जोइए के-आपणा पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय परमोपकारि श्रीमहावीरप्रभुना अतीत भावि वर्तमान समस्त तीर्थकरोना वचनोथी अविरोधि विद्यमान सिद्धान्तोमां पण जेटलो भाग प्राकृतमिश्र दृष्टिगोचर थाय छे, तेना करना बहुज ओछो भाग अन्य दार्शनिक सिद्धान्तादिमां देखाय छे. ...
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