Book Title: Prakrit Rupmala
Author(s): Kasturvijay
Publisher: Vadilal Bapulal Shah

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Page 6
________________ १ अकारान्त इकारान्त उकारान्त ऋकारान्त ओकारान्त, औकारान्त तेमज बीजा केटलाक व्यंजनान्त शब्दोना त्रणे लिंगमां संपूर्ण रूपो. तेमज साथे आ रूपो सिद्ध करबामाटे ते ते ठेकाणे आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिकृत प्राकृत 'व्याकरणना सूत्रोना आधारे बनावेला नियमो णप गुजराती भाषामा जोडया छे. २ सर्व विगेरे सर्वादि शब्दों तेमज व्यंजनान्त तत्-यत् युष्मद् अस्मद् विगेरे शब्दो तेमज संख्यावाचक शब्दोना सम्पूर्ण रूपो. .. ३ स्वरान्त अने व्यंजनान्त धातुओना रूपो वर्त्तमानकाल भवि व्यत्काल-विधि - आज्ञार्थ - भूतकाल - क्रियातिपत्ति एम छए कालमां तथा कर्तरिधातुना कर्मणि रूपो, प्रेरकरूपो, प्रेरक रूपोना कर्मणि रूपो, तेमज इच्छादर्शक धातुना रूपो, तथा तेनां कर्मणि अने प्रेरक रूपो. ४ धातुना रूपो सिद्ध करवा माटे प्रत्ययो तथानियमो अने नियमोनी प्रतीति माटे श्रीमान् हेमचन्द्रसूरिजीना प्राकृत व्याकरणनाउपयोग सूत्रो पण टांकेला छे. संस्कृत शब्दो उपरथी प्राकृत शब्दो बनाववाना सामान्य नियमो ६ तद्धित, अव्यय, लिंगानुशासन, कारक, कृदन्त, विगेरे केला एक विषयो नियमपूर्वक आपवामां आव्या छे. ७ शब्दकोश.

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