Book Title: Prakrit Rupmala
Author(s): Kasturvijay
Publisher: Vadilal Bapulal Shah

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Page 7
________________ ८ संस्कृतना आदेश, प्राकृत धातुकोश. ( अर्थ सहित ) ९ पाकृत धातुओनो अकारादि अनुक्रम. - अन्यकर्ताए मने जणावेल छे-जे-आ प्रस्तुत कृतिमा प्राकृतभाषाना परिचयवाळा विज्ञवर्गने जे काइ निर्मलता तथा आदेयता जणाय, ते परत्वे यशना भाजन प्रस्थानपंचक सूरिमन्त्राराधकस्वपरशास्त्रादिविज्ञाता पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय संपतिविरहरमाण-परमगुरुवर्य श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरपट्ट पूर्वांचलनभोमणि-सदाचारशोलवैराग्यगुरुभक्तिपरायण प्रस्तुत लेखकना सिद्धान्तादिपा. ठकसत्कृमिसांनिध्यकारक-परमोपकारि-गीतार्थ मुख्य-सिद्धान्तवाचस्पति-न्यायविशारद-पूज्यपाद-श्रीमद् विजयोदयसूरिजो म. हाराज छे. जेओश्रीना-स्वपरशास्त्र विषयक सम्पूर्ण संगीनबोधनी साथे स्पर्धा करनार वर्तमानकाळमां भाग्येज जैन कोम्युनीटीमां कोई व्यक्ति देखाती इशे. "ज्ञान- भूषण परोपकार छे" ए तेओ श्रीनो मुख्य प्रतिज्ञासिद्धान्त होवायी जेओश्री प्रस्तुत प्रस्ता. बनाना लेखक तथा आ ग्रन्थना रचनार मुनि कस्तुरविजय आदि अनेक भव्य जीवोने भावदान समी कृतार्थी बनावी रह्या छे. ___ पर्यन्ते भव्य जीवो आ मन्थना अध्ययन अध्यापन मनन अने निदिध्यासनद्वारा प्राकृत शब्दो अने धातुओर्नु विज्ञान सम्पादन करी पोतानी उचित भूमिकाने अनुसारे प्रकरण सिद्धा. न्तादिनो मूल अभिप्राय यथार्थ समजी ज्ञान- फल विरति प्राप्त करी क्षपकश्रेणिमां आरूढ थइ घातिकमनो नाश करी केवलज्योतिः प्रकटावी शाश्वतानन्द अपवर्ग स्थानने प्राप्त करो, तेम हार्दिक अ. भिलाषा प्रकट करी हवे हुँ आ टुंक प्रस्तावनाने मंक्षेपी लइश.

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