Book Title: Prakrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 02
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________
संती भावुष्पत्ती को
संती भावप्यत्ती को संती य भरहवासे,
संती य भरहवासे, तुट्ठो कम्मनिव
संते अडयालसयं, खवगं सतेअरलद्धिजुए अराइभावेसु
संते चडवीस चउ संते दुगवीसाइ
संते व असंते वा लोए संते वि अ एअम्मी ओहेण
संतेविको वि उज्झइ,
संते व चित्तवित्ते दि
संते वि निवइ-दोसे, संते विय परिणामे गुरुमूल
संतेवि सिद्धिसुक्खे,
संतेसु निय-कुलिंगियसंतेवि भोगे
(प्र.सा.) १२०३ (ति.गा) ३२९
(ति.गा) ५४३
(न.मा.) ८।८३
संतोसगुणेण अकिंचनो
संतोसनंदणवणे कसो संतोसपासपडिओ न परं संतोसरसामयपरिणइवसेज
संतोससारतमलज्जितं, संतोसामयरससिंचमाण
(क.भा.) २९
(पंचा.) २३७
(क.सं.) ३५
(क.सं.) ४१ (ऋषि) ११२ (पंच) ५२२
(उव.) ३७ (हि.ज.) ७१ (हि.उ.) ३३० (श्र.प्र.) १११ (पु.मा.) ४९४ (वि.वि.) १७
(पंच) १९३ (हि.उ.) ५१७ (र.सं.) १६५ (प्र.सा.) १२०१ (सं.प्र.) १०२८ (सं.प्र.) ५१४ (श.भा.) १७०
संतेसु संपराए, चरिय
संतेहिं असंतेहि परस्स संतो जीवो को जाण संतो दंतो धीरो असद संतो पसंतचित्तो दंतो संतो मोक्खो जेणं संतोसखग्गदारियमोहरिङतेण (मा.उ.) ३
(द.चि.) १२८ (विष) २२ (विष) २३ (विष) २१ (द्वा.कु.) १३१७ (सं.मा.) ६५ (सं.मा.) ७५
संतोसेण न मुज्झसि संतोसो करण (पव्व.) ३३ संरओ गाणं उग्गो (द.र.) १४२ संथरणम्मि असुद्धं (जी.अ.) २०५ संथरणम्मि असुद्धं, दुण्ह ( श्रा. दि.) १७५ संचरणाम्म असुद्ध दोहे (पिं.वि.) २१ संथरणम्मि असुद्धं, दोह (गाथा.) १८६ संथरणम्मि असुद्धं, दोह (दं.प.) १२८ संथारगपव्वज्जं न य ( आरा. १) १५९ संथारगपव्वज्जं पडिवज्जइ (आरा. १) २२८ संथारगम्मि निविस नवकारं (पो.वि.) ६१
संधारत्थो खवओ जया संधारपरावर्त अभिरहे संधारपायपुंछणसयणासण
(आरा. १) ७६१ (उ. प.) २२३ (दा.मा.) ५४
स
संथारभुवं संथारउत्तरावट्ट्यं संथारयपव्वज्जे संपडि संथारयसंथरया चउरो संथारस्स य करणं छ संधारुत्तरो अड्डा संधारुत्तरपट्टी अठ्ठाइजा संथारुत्तरपट्टो भणि संथारुत्तरपट्टो लट्ठीपमुहोसंथारे थंडिले चिय अप्पसंथारो उत्तिमट्ठे संथारो मडओ से संदिदोसंदिदुस्स अंतिए
संदि संदिटुस्स चैव संदिो संदिगुस्सेवमसंदिट्टु संदिद्धं संसइअं घोलिअं संदिद्धा य विवक्खा
दिसह किं भणामो
संदिसह भणति गुरु संदिस्सावइ पकरइ सज्झायं संदिस्सावेमि तहा संदेहं संपत्तो मुणिणो संदेहकारितिमिरेण
संपइ गुणठाणे संपइ तं जुगपवरं संपइ तइओ आगम संपइ तित्थमजुत्तं संपइ तुम्ह भत्तस्स, दंडग संपइदंसी मुद्धो विसयंसंपइ दसमच्छेरयनामायसंपइ दूसमकाले धम्मत्थी संपइ दूसमकाले धम्मात्थी
(पो.वि.) ६० (आय. १) १५७ (प्र.सा.) ६३२ (स.शा.) १३२ (प्र.सा.) ५१३ (वि.सा.) २१३
336
(स.शा.) १३१
( य.च.) १२५ ( य.च.) १२५ (न.प्र.) ११७ (न.प्र.) ११७
(आरा. १) ८३
(आय. १) ८७ (पंच.) ९८८
संदोहो निउरंबो भरो
(धूर्ता.) १५० (बृ.सं.) ४२ (सं.प्र.) ३९२ (व्या. वि.) २७ (दि.शु.) २६ | संपद आवरणाई गाहाएणुभा (श.भा.) ७२७ - | संपइ एयायो चिय जहन्नणु (श.भा.) ६०९ - संपइकाले वि इमं कार्ड
संधप्पथं च सोमरस, संधुकिअं उद्दीविअं संधेइ तो वि जाहे ता | संनिहिए सामाणे, द्धाइ संनिहिमाहाकम्मं जलफल संपइ अ धेरकप्पो, समझो संपइ आवई खेमा, जामा
संपइ केई सड्ढा अलद्धगुरुणो संपइ केई सड्ढा गाढं
(सं.नि.) ४२ (गु.श.) ३७ (गु.श.) ५३ (श.भा.) १०२
संपइ पुणो न दिज्जइ
| संपइ भणति केई संपइरायविणिम्मियसंपइ रे जीव तुमं ! संपड़ विहरंत गुणी,
(पंचा.) ५८८ (सामा.) ७२ (पा.ल.) १८५ (ध.सं.) १२९२
संपइ सत्यसरी सुमरति
संपइ सुगुरूहि विणा
(पंच.) २८८ (पो.वि.) ९७ (स.शा.) ४०
(पंच.) १३४१ संपज्जंति सुहाई जइ धम्मसंपन्जड मह एवं तुह संपण्णवरविवेयं, जं संपति एकारसमं पुर्व संपतजोव्वणभये संपत्तदंसणाइ पदिय पइदियहं | संपत्तदंसणाई पदियहं संपत्तदंसणाई, पईदियहं संपत्त- महामहिमो गव्वं संपत्त- महावसणो धम्मं संपत्तवरविवेयं वयत्थिगिहिसंपत्ता इव पर्याव समत्थसंपत्ता व खणेणं संपत्ता य खणेणं
(ध.मा.) ५४
ग.सा.) ११६ (पा.ल.) १९ (दे.प्र) २७०
संपाइमरयरेणू, पमज्जणट्ठा
( षष्ठि.) १९२ (गु.कु.) २५ (जी.अ.) १०४
संपइ दूसमकाले धम्मत्थी संपइ दूसमसमए, दीसइ
संपइ निच्चं कीरइ संपइ पंचगहाणिपमुहसंप परंपराए, जह संपइ परंपरागमनायेणं संपइ पवट्टमाणा मुद्दा संपइपहुवयणेण वि जाव संपद पुण सोहम्मे
(प्र.प.) ६ (प्र.प.) ५८२
संपत्ता व जणवदा पणटु| संपत्ता य जणवदा पणट्ठसंपत्तिए अ उदए पओगओ संपत्ती य इमस्सा कम्म
| संपत्ते इच्वाइस सुसु
| संपत्ते सम्मते तत्थेमा संपत्ती निभवणं लहड़ संपदिकालं पण्डे वण्णो संपत्रं चिदण, छवि चिइवंदण, छव्विह(प्र.प.) ५८४ संपत्रगुणो वि जओ (दंड.) ४१ संपप्प जीयकाले, उदयं (वि.नि.) २१ संपयमवि तं विज्जइ, ( षष्ठि.) १४१ (षधि.) १४१ संपाइमरवरेणू पमज्जा (सं.प्र.) ५१० संपाइमरवरेणूपमज्जणद्वा | (सं.प्र.) ९६५ संपाइमरयरेणू, पमज्जणा | संपाइमरयरेणू, पमज्जणट्ठा
(प्र.प.) ६०७ पौ.च.) १९
(प्र.प.) ८०२
(द्र.प.) १३४
(षष्टि) १५३ (देश) २१८
(जी.अ.) १८४
(गु.श.) ५०
(र.सं.) २४८
(उ.च. १) ८
(स.शा.) ७
(म.भा.) २२
(गु.श.) ७८
(भ.भा.) ४९२ (चे.म.) ८६५
(सु.गु.) ११ (ति.गा) ७५३
(न.मा.) १।५८
(सं.प्र.) ९६१
(श्री. प्र.) २ (सं.सि) ८० (ध.मा.) ४९
(ध.मा.) ९८ (ग.सा.) ११ (न.शा.) ४ (तिगा) २०२
(ति.गा) २५६
(ति.गा ) ९०६ (कर्म.) २५२ (ध.सं.) ७५० (पंचा.) ६२५
(सं.प्र.) २६८
(उप.) ३।२१९ (अ. चू.) १४ (मस्थ. ३५ (ज्ञा.क.) ५२ (पं.सं.) १६७
(गु.त.) १।१८२
(प्र.सा.) ५१५
(वि. सा.) २१५ (गाथा.) ४८२
Page Navigation
1 ... 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446