Book Title: Prakirna Stavano Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ ऑगस्ट २०११ १३३ तुझ सरिखउ जउ बीजउ हुइ जी, जोता स्युं एह जगमांहि हो, तिहारिं तुझनें कुण महिनत करइ जी, जइ वलगुर तेहनी बांहि हो.अव०९ ताहरी माइ२ एक तुं हि ज जण्यो जी, बीजो कोइ नहि बलवान हो, इम जाणी२-नइ हुं आवियउ जी, मुज मुजरो२ ल्यो महिरवान हो. अव० १० जउ मुझनइं तुम्हें उवेखस्यो जी, तउ पणि हुं न छोडं तुझ हो, तुम्हे साथे निवड नेहिं करी, अविलंब्योर आतम मुझ हो. अव० ११ ताहरि तङ सेवक छै घणा जी, पणि ता(मा)हरि, साहिब तुं एक हो, भवमांहि. भमतां भवोभविं जी, तुझ सेवा. चाहुं सुविवेक हो. अव० १२ निसनेहीपणुं लही नीर- जी, मच्छ जलनि न छाडि तो हि हो, जल विनातेहनें जीवाडवा जी, नही बीजो समरथ कोइ हो. अव० १३ जेह विना काज सरें नही जी, सी तेस्युं आखरि रीस हो, मेहानें वली मोटां घरां जी, आस तजीइ न वीस्वावीस हो. अव० १४ ते माटि२ हुं त्रिविधिं करी जी, पास गोडी गरीबनिवाज हो, सेवक छु उदय सदा लही जी, मनमोहन श्रीमहाराज हो. अव० १५ परगरज (१) मया (२) चारो (३) गुनही (४) ओलगे (५) पालटि (६) मीटि (६) जगवितरेक (८) आखरि (१४) शब्दकोश परोपकारी, परगजु दया, कृपा उपाय, रस्तो गुनेगार सेवे, सेवा करे बदलावे मीट ? नजर ? जगतमां तेना जेवू बीजुं कोई नथी, जगतव्यतिरेक आकरी ?Page Navigation
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