Book Title: Prakirna Stavano Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ ऑगस्ट २०११ १३७ ९ चउद भेदे हो, चउद राज मझार किं चोरासी लख योनिमां, भ्रम रसीओ हो, वसीओ बहुवेस किं भवपरिणति तति गहनमां. असुद्धता हो, थई असुद्ध निमित्त किं सुध निमित्तें ते टलें, ते माटे हो, सर्वज्ञ अमोह किं तुम्ह संगे चेतन हिलें. निजसत्ता हो, भासन रुचिरंग किं खिमांविजय गुरुथी लही, जिनविजयें हो, पारग तुम्ह सेव किं साधन भावइं संग्रही. इति संभवप्रभोः स्तवः ॥ ----- पञ्चतीर्थी स्तवन आदि ए आदि जिणेसरू ए, पुंडर पुंडरगिरि सिणगार के, रायणंरूख समोसर्या ए, पूरव पूरव नवाणूं वार के, आदि ए आदि जिणेसरू ए, आदि ते आदि जिणंद जाणूं, गुण वखाणूं जेहना, मनरंग मानव देव दानव, पाय पूजे तेहना, एक लख चोरासी पूरव पोढा, आयु जेहनो जाणीइं, सेत्तुंज सामी रिसह पामी, ध्यान धवलो आणीइं. १ दीठो ए दीठो ए दीओदर मंडणो ए, मीठो ए मीठो ए अमीय समाण के, शांति जिणेसर सोलमो ए मोहए सोवन वान के, दीठो ए दीठो ए दीओदरमंडणो ए, दीओदर मंडण, दुरितखण्डण दीठे दारिद्र चूरए, सेवता संकट सर्व नासें, पूज्या वंछित पूरए, सूर करिय माया सरणें आया, पारेवो जिणे राखीओ, दाता भलेरो दया केरो, दान मारग दाखीओ. २ गिरुओ ए, गढ गिरनारनो ए, जस सिर जस सिर नेमीकुमार के, समुद्रविजय राया कुलतिलो ए, राणि शिवादेवी तणो रे मलार के, गिरुओ ए गढ गिरनारनो ए, गिरनार गिरुओ डुंगर देखी, हीइं हरखी हे सखी, नवरंग नवेरी नेमि केरी, करिस पूजा नवलखी,Page Navigation
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