Book Title: Prakirna Stavano
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ १३६ अनुसन्धान-५६ ए सकल सुखकर, तुं जग दुःखहर वंछिअ आसो पूरणो, इम आवइ सुरवर नमि रंगभरि, परम पातिक चूरणो, मि उलट आणी स्तव्यो रंगई, तुं जगजंतु हीतकरू, जीवसौभाग्य सेवक जंपि, आसा पूरो जिनवरु. म०||२७|| शब्दकोश बोहड (८) भेलडिअ (२५) ? भीलडिया - - - - - श्रीसंभवनाथ-स्तव ॥०॥ सुखकारक हो, श्रीसंभवनाथ किं साथ ग्रह्यो में ताहरो, सिद्धपुरनो हो, प्रभु सारथवाह किं भव अडवीनो भयहरो. हुँ भमीओ हो, मोहवस महाराज किं गहन अनादि निगोदमां, कीधा पुद्गल हो, परावर्त अनंत किं महामूढतानिंदमां. तिरिगइमां हो, असन्नि एगिदि किं वेद नपुंसक ने वनां, आवलिंने हो, असंख्य में भाग किं सम पुग्गलपरावर्तनां. सुक्ष्ममां हो, सामान्ये स्वामि किं भू जल जलण पवन वनें, उत्सप्पिणी हो, असंख्याता लोग किं नभप्रदेश समा मिणे. उघे बादर' हो, बादरवनमांहि किं अंगुल असंख्यभागें मिता, अवसप्पिणी हो, सुहुम थुल अनंत किं अढी पुग्गलपरिअत्तता. हिवें बादर हो, पुढवीने नीर किं अनल अनिल पत्तेयतरु, निगोदमां हो, सुणि तारकदेव किं सित्तरि कोडाकोडि सागरु. विगलेंदी हो, मांहि संख्यात किं सहस वरस जीवन रुल्यो, पंचिंदी हो, तिरि नर भव आठ किं आठ करम कचरें कल्यो. नारक सुर हो, एक भव अरिहंत किं विण अंतर सांतर पणे, कहु(हुं) केती हो, जाणो जगदीस किं कर्मकदथ(र्थ)न जीवनें. ५ ७ ८

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10