Book Title: Prachin Malva ke Jain Vidwan aur unki Rachnaye
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf

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Page 4
________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास३. आराधनाकथाकोश - इसमें चन्द्रगुप्त के अतिरिक्त है। इसे सिद्धचक्र भी कहते है, क्योंकि इसके प्रत्येक सर्ग के समन्तभद्र और अकलंक के चरित्र भी वर्णित है।२५ अंत में सिद्ध पद आया है।३१ ४. पुष्पदन्त के महापुराण पर टिप्पण ५. समाधितंत्रटीका, . ४. ज्ञानदीपिका ५. राजमतिविप्रलम्भ - खण्डकाव्य ६. प्रवचनसरोजभास्कर ७. पंचास्तिकायप्रदीप, ८. ६. अध्यात्मरहस्य - (योगसार) - इसमें ७२ संस्कृत आत्मानुशासनतिलक, ९. क्रियाकलापटीका, १०. रत्नकरण्ड- श्लोकों द्वारा आत्मशद्धि, आत्मदर्शन एवं अनभति के योग की टीका, ११. वृहत्स्वयम्भूस्तोत्रटीका १२. शब्दाम्भोजटीका। इनके भूमिका का प्ररूपण किया गया है। रचनाकाल के सम्बन्ध में जानकारी नहीं मिलती है। प्रभाचन्द्र ७. मूलाराधनाटीका ८. इष्टोपदेशटीका ९. भूपालचतुर्विंश का समय विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध और बारहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिये।२६ तिकाटीका १०. आराधनासारटीका ११. अमरकोशटीका १२.क्रियाकलाप - व्याकरणग्रन्थ १३. काव्यालंकारटीका - इन्होंने देवनन्दी की तत्त्वार्थवृत्ति के विषम पदों का एक अलंकारग्रन्थ १४. सहस्त्रनामस्तवनसटीक, १५. जिनयज्ञ विवरणात्मक टिप्पण लिखा। इनके नाम से अष्टपाहुड पञ्जिका, कल्पसटीक - इसका दूसरा नाम प्रतिष्ठासारोद्धार धर्मामृत का मूलाचारटीका, आराधनाटीका, आदि ग्रन्थों का भी उल्लेख मिलता एक अंग है। १६. त्रिषष्टि - स्मृतिशास्त्रसटीक १७. नित्य है, जो उपलब्ध नहीं हैं। महोद्योतअभिषेकपाठस्नानशास्त्र १८. रत्नत्रयविधान, १९. १४. आशाधर :- पंडित आशाधर संस्कृत-साहित्य के अपारदर्शी अष्टांगहृदयीद्योतिनीटीका-वाग्भट के आयुर्वेदग्रन्थ अष्टांग हृदयी विद्वान थे। ये मांडलगढ़ के मूलनिवासी थे किन्तु मेवाड़ पर की टीका, २०. धर्मामृत मूल, २१ भव्यकुमुदचन्द्रिका - धर्मामृत मुसलमान बादशाह शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमणों से त्रस्त होकर पर लिखी गई टीका। मालवा की राजधानी धारानगरी में अपनी स्वयं एवं परिवार की आशाधर काव्य, न्याय, व्याकरण, शब्दकोश, अलंकार, रक्षा के निमित्त अन्य लागा क साथ आकर बस गय था प. धर्मशास्त्र योगशास्त्र. स्तोत्र और वैद्यक आदि सभी विषयों में आशाधर बघेरवाल जाति के श्रावक थे। इनके पिता असाधारण थे। का नाम सल्लक्षण एवं माता का नाम श्री रत्नी था। सरस्वती १५. श्रीचन्द्र : ये धारा के निवासी थे। लाड़बागड़ संघ और नामक इनकी पत्नी थी- जो बहुत सुशील एवं सुशिक्षिता थी। बलात्कारगण के आचार्य थे। इनके ग्रन्थ इस प्रकार हैं -१. इनके एक पुत्र भी था, जिसका नाम छाहड़ था। इनका जन्म किस संवत् में हुआ यह तो निश्चितरूप से नहीं कहा जा सकता रविषेण कृत पद्मपुराण पर टिप्पण। २. पुराणसार ३. पुष्पदन्त के किंतु ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इनका जन्म वि.सं. महापुराण पर टिप्पण ४. शिवकोटि की भगवती-आराधना पर १२३४-३५ के लगभग अनुमानित है।२६ ये नालछा (धार टिप्पण। पुराणसार सं. १०८० में पद्मचरित की टीका वि.सं. जिला) में ३५ वर्ष तक रहे और अपनी साहित्यिक गतिविधियों १०८७ में उत्तर पुराण का टिप्पण वि.सं. १०८० में राजा भोज के का केन्द्र बनाया। इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है समय रचा। टीकाप्रशस्तियों में श्रीचन्द्र ने सागर सेन और प्रवचनसेन नामक दो सैद्धांतिक विद्वानों का उल्लेख किया है जो धारा के १. सागरधर्मामृत - सप्त व्यसनों के अतिचार का । | निवासी थे। इससे स्पष्ट विदित होता है कि उस समय धारा में वर्णन। श्रावक की दिनचर्चा और साधक की समाधिव्यवस्था अनेक जैन-विद्वान और आचार्य निवास करते थे। इनके गुरु आदि इसकेवर्ण्य विषय हैं।२८ रचनासमाप्ति का समय वि.सं. का नाम श्रीनन्दी का। १२९६ है।२९ १६. कवि दामोदर :- वि.सं. १२८७ में ये गुर्जर देश से मालवा २. प्रमेयरत्नाकर - यह स्याद्वाद विद्या की प्रतिष्ठापना में आये और मालवा के सल्लखणपुर को देखकर संतुष्ट हो गये। आगरा करने वाला ग्रन्थ है।३९ । ये मेडेत्तम वंश के थे। पिता का नाम कवि माल्हण था जिसने ३. भरतेश्वराभ्युदय - इसमें भारत के ऐश्वर्य का वर्णन दल्ह का चरित्र बनाया था। कवि के ज्येष्ठ भ्राता का नाम जिन arodroidrotonirarodridroramodridroorhoriridr6M १४idririramiridrodroidrodroidrioritorirdridwww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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