Book Title: Prachin Malva ke Jain Vidwan aur unki Rachnaye
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf

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Page 6
________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - इतिहास२१. तारण स्वामी - ये तारण-पंथ के प्रवर्तक आचार्य थे। ९. संगतिमंडन - यह संगति से सम्बन्धित ग्रन्थ है। इनका जन्म पुहुपावती नगरी में सन् १४४८ में हुआ था। इनके १०. कविकल्पद्रुमस्कन्ध - इस ग्रन्थ का उल्लेख मंडन पिता का नाम राढा साव था। वे दिल्ली के बादशाह बहलोल लेना लोदी के दरबार में किसी पद पर कार्य कर रहे थे। आपकी शिक्षा २३. धनदराज - यह मंडन का चचेरा भाई था। इसने शतकमय श्री श्रुतसागर मुनि के पास हुई। इन्होंने चौदह ग्रन्थों की रचना २२. की, जिनके नाम इस प्रकार हैं (नीति, शृंगार और वैराग्य) की रचना की। नीतिशतक की प्रशस्ति से विदित होता है कि ग्रन्थ उसने मंडपदुर्ग में सं. १४९० में १. श्रावकाचार २. मालाजी ३. पंडितपूजा ४. कलम - लिखे। बत्तीसी, ५. न्यायसमुच्चयसार ६. उपदेशशुद्धसार ७. त्रियंगी आगे और विस्तार में न जाते हए इतना ही कहना पर्याप्त सार, ८. चौबीस ठाणा ९. ममलपाहु, १०. सुन्नस्वभाव ११. सिद्धस्वभाव १२. रवात का विशेष १३. छद्मस्थ वाणी और होगा कि मालवा में जैन-विद्वानों की कमी नहीं रही है। यदि इस दिशा में और भी अनुसंधान किया जाए तो जैन विद्वानों और १४. नाम माला। उनकी रचनाओं पर एक अच्छा ग्रन्थ तैयार हो सकता है। २२. मंत्रीमंडन : यह झांझण का प्रपौत्र और बाहड़ का पुत्र था। विश्राम है कि इस ओर ध्यान दिया जायेगा। यह बहुमुखी प्रतिभावान था। मालवा के सुलतान होशंग गौरी का प्रधानमंत्री था। इसके द्वारा लिखे गये ग्रंथों का विवरण इस सन्दर्भ प्रकार है १. संस्कृति-केन्द्र उज्जयिनी (पृष्ट ११२-११४) में विस्तृत विवरण १. काव्यमंडन - इसमें पांडवों की कथा का वर्णन है।। उज्जयिनी - दर्शन, पृष्ठ ९३ २. शृंगार मंडन - यह शृंगार रस का ग्रन्थ है। इसमें १०८ विस्तृत विवरण के लिए द्रष्टव्य (क) श्री राजेन्द्र सूरि स्मारक श्लोक हैं। ग्रन्थ, पृ. ४५२ से ४५९ (ख) श्री पट्टावली पराग संग्रह, पृ१३६ ३. सारस्वतमंडन - यह सारस्वत व्याकरण पर लिखा ४. स्व. बाबू श्री बहादुरसिंह जी सिंधी स्मृति ग्रन्थ, पृ.१० गया ग्रन्थ है। इसमें ३५०० श्लोक हैं। The Jain Sources of the History of Ancient India. Page 150-151 ४. कादम्बरीमंडन - यह कादम्बरी का संक्षिप्तीकरण है ६. संस्कृति-केन्द्र उज्जयिनी, पृ. ११८ जो सुलतान को सुनाया गया था। इस ग्रन्थ की रचना सं. १५०४ ७. वही, पृ. ११८ में हुई थी। ८. . वही, पृ. ११६ 9. The Jain sources of the History of India, ५. चम्पूमंडन - यह ग्रन्थ पांडव और द्रौपदी के कथानक Page 195 andonward. पर आधारित जैनसंस्करण है। रचना-तिथि सं. १५०४ है। १०. संस्कृत साहित्य का इतिहास गैरोला पृ. ३५१-३५२ ६. चन्द्रविजयप्रबंध - इस ग्रन्थ की रचना-तिथि सं. ११. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. ११६ १५०४ है। इसमें चन्द्रमा की कलाएँ, सूर्य के साथ युद्ध और १२. अनेकान्त, वर्ष १८ किरण ६, पृ. २४२ एवं आगे चन्द्रमा की विजय आदि का वर्णन है। १३. गुरू गोपालदास वरैया स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ ५४४ ७. अलंकारमंडन - यह साहित्यशास्त्र का पाँच परिच्छेद १४. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, प्र. ८६ में लिखित ग्रन्थ है। काव्य के लक्षण, भेद और रीति. काव्य के १५. गुरु गोपाल दास वरैया स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ ५४५ दोष और गुण, रस और अलंकार आदि का इसमें वर्णन है। १६. संस्कृत साहित्य का इतिहास, भाग - २, पृ. २८६-८७, इसकी रचनातिथि भी सं. १५०४ है। अनुवादक-मंगल देव शास्त्री १७. संस्कृत साहित्य का इतिहास, भाग-२, ८. उपसर्गमंडन - यह व्याकरण-रचना पर लिखित ग्रन्थ है। पृष्ठ ३४४-४५ nanodwordarsanoramidnironioradnoramirontraramid१६Horsriraramidniramirsindanbarodairandavar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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