Book Title: Prachin Jain Ram Sahitya me Sita Author(s): Lakshminarayan Dube Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 3
________________ सीता के कारण रावण एवं राक्षसों के विनाश की भविष्यवाणी कर देते हैं स्वयं भू ने सीता के चरित्र को अनुपम तथा दिव्य स्वरूप प्रदान किया है। तेहिं हणेवउ रक्खु महारगे। जैन-राम-साहित्य में सीता-निर्वासन प्रसंग: जगय-णराहिव-तणय कारणे । राम-कथा के समान सीता-निर्वासन के आख्यान और को भी प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम श्रेय महर्षि आयहे कण्णहें कारणेण होइस। वाल्मीकि को है। विणासु बहु-रक्तसहुँ । गुणभद्र के 'उत्तर पुराण' में सीता-त्याग की कोई वन में सीता के चरित्र का विकास मौन रूप में चर्चा नहीं मिलती । इसकी शृखला में महाभारत, होता है । सीता युद्धों के विपरीत है हरिवंश पुराण, वायु पुराण, विष्णु पुराण, नृ संह कर चलण-देह-सिर-खण्डणहु । पुराण और अनायकं जातकं भी आते हैं जिनमें सीताणिविण माए हउ भण्डणहु ॥ निर्वासन-आख्यान का अभाव है। परन्तु सीता-त्याग हउं ताएं दिण्णी केहाहुं । को अधिकांश जैन-राम-साहित्य स्वीकार करता है। कलि-काल-कियन्तहं जेहाहूँ ।। सीता-निर्वासन के मुख्य चार कारण थेसीता-हरण के समय वह अपने को बड़ी अभा- (क) लोकापवाद-जैन-राम-साहित्य में इसका गिनी मानती है प्रतिपादन विमल सरि के 'पउम चरियं' तथा रविषेण के 'पद्म चरित' में मिलता है । स्वयंभू ने अपने महाको संथवई मई को सुहि कहों दुक्खु महन्तउ । काव्य 'पउम चरिउ' में इसकी पृष्ठभूमि का विश्लेषण जहिं जहिं नामि हउं तं तं जि पएस पलित्तउ।। करते हुए लिखा है : अयोध्या की कतिपय पुश्चली रावण के प्रलोभनों तथा उपसर्गों से सीता का नारियों ने अपने पतियों के समक्ष यह तर्क किया कि हिमालय जैसा अचल और गंगा जल जैसा पवित्र यदि इतने दिनों तक रावण के यहाँ रहकर आनेवाली चरित्र रंचमात्र भी विचलित नहीं हो पाया । सीता सीता राम को ग्राह्य हो सकती है तो एक-दो रात अग्नि परीक्षा में सफल होती है अन्यत्र बिता-कर उनके घर लौटने में पतियों को आपत्ति क्यों हो ?-इस चर्चा को लेकर नगर में सीताकि किजइ अण्णइ दिव्वे, विषयक प्रवाद फैलता हैजेण विसुज्झहो महु मणहो । पर-पुरिसु रमेवि दुम्भहिलउ, जिह कणय-लालि डाहुत्तर, अच्छणि मज्झे हुआरुहण हो । देंति पडुत्तर पह-यणहो । कि रामण भुजइ जणय-सुय, अंत में सीता का विरागी मन स्त्री न बनने की वरिसु वसेवि धरे रामण हो ।। घोषणा कर देता है राम कुल की मर्यादा के कारण सीता को निष्काएवहि तिह करेमि पुणु रहुवइ । सित कर देते हैं । 'पउम चरिउ' अनेक मार्मिक तथा जिह ण होमि पडिवारी तियमइ ।। भाव-प्रवण प्रसंगों से परिपूर्ण है परन्तु सीता-त्याग का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8