Book Title: Prachin Jain Ram Sahitya me Sita Author(s): Lakshminarayan Dube Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 8
________________ (घ) परोक्ष कारग हिन्दी की जैन-राम-कथा की मध्यकालीन परम्परा ___'पउम चरियं' के पूर्व 103 में यह कथा आयी है में मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं:कि सीता ने अपने पूर्व जन्म में मुनि सुदर्शन की बुराई (क) मुनिलावण्य की 'रावण मन्दोदरी सम्वाद्'। की थी और इसके परिणामस्वरूप वह स्वयं लोकापवाद की पात्र बन गयीं। (ख) जिनराजसूरी की 'रावण मन्दोदरी सम्वाद' और (ग) ब्रह्मजिनदास का 'रामचरित' या 'रामरस' और समाकलन : 'हनुमंत रस' / सम्पूर्ण जैन राम-साहित्य सीता की विभिन्न इनमें सीता के चरित्र के अनेक उज्ज्वल तथा छबियों तथा बिम्बों से परिपूर्ण है / उनको जैन कवियों सरस पाश्वों को सफलतापूर्वक उदघाटित किया गया ने अपने धर्म-सम्प्रदाय तथा सिद्धान्त के अनुसार गढ़ने का सफल प्रयास किया है। भारतीय वाड मय को जैन राम-साहित्य का यह अप्रतिम प्रदेय है कि उसने सीता को धरती-पुत्री के समान ही आकलित किया। 248 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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