Book Title: Prachin Jain Ram Sahitya me Sita Author(s): Lakshminarayan Dube Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 1
________________ प्राचीन जैन राम - साहित्य में सीता डा० लक्ष्मीनारायण दुबे जैन राम - साहित्य : जैन वाङ्गमय में विपुल रामकथा तथा राम काव्य मिलता है । जैन रामकथा सामान्यतया आदिकवि वाल्मीकि से प्रभावित है। जैन राम साहित्य प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा कन्नड़ में मिलता है यह इसका पुरातन रूप है । Jain Education International प्राकृत में चार ग्रन्थ लिखे गये जिनमें सीता का चरित्र-चित्रण सम्यकरूपेण मिलता है— विमल सूरि का पउमचरियं शीलाचार्य की रामलक्खण चरियम् भद्रेश्वर की कहावती में रामायणम् और भुवनतुरंग सूरि का रामलक्खणचरिय संस्कृत में रवि पेण के पद्मचरित आचार्य हेमचन्द्र के जैन रामायण, जिनदास के रामदेव पुराण, पद्मदेव विजयगणि के रामचरित, सोमसेन के रामचरित, आचार्य सोमप्रभकृत लघुत्रियशलाकापुरुष चरित, मेघविजय गणिवर के लघुत्रियष्टिशलाकापुरुष चरित्र आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश में स्वयंभू का पउमचरिउ र का पद्मपुराण आदि प्रसिद्ध हैं कन्नड़ में नागचन्द्र के रामचन्द्र चरित पुराण, कुमुन्देन्दु के रामायण, देवय के रामविजयचरित, देवचन्द्र के रामकयावतार और चन्द्रसागर के जिन रामायण को विस्मृत नहीं किया जा सकता । जंन सीता-साहित्य इसी परम्परा में सीता को लेकर भी कतिपय काव्य लिखे गये थे जो कि विशेष उल्लेखनीय हैंभुवनतुरंग सूरि का सीया चरिय ( प्राकृत), आचार्य हेमचन्द्र का सीता रावण कथानकम् (संस्कृत), ब्रह्म नेमिदत्त, शांत सूरि और अमरदासकृत सीताचरित्र (संस्कृत) हरिषेण का सीताकथानम् । हरितमहल मे 'मैथिली - कल्याण' नामक नाटक संस्कृत में लिखा था । जैन - रामकथा की द्वितीय परम्परा के जनक गुणभद्र थे जिनका 'उत्तर पुराण' और कृष्णदास कवि कृत 'पुण्य चन्द्रोदय पुराण' संस्कृत में लिखा गया प्राकृत में 'पुष्पदन्त का तिसट्ठी - महापुरिस गुणालंकार और विमल सूरि की परम्परा में निम्नलिखित साहित्य कन्नड़ में चामुण्डराय का त्रिषष्टि शलाकापुरुष पुराण मिलता है : लिखा गया । २४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8