Book Title: Prachin Gurjar Kavya Sanchay Author(s): H C Bhayani, Agarchand Nahta Publisher: L D Indology Ahmedabad View full book textPage 6
________________ प्रधान संपादकीय डॉ. हरिवल्लभ भायाणी और श्री अगरचंद नाहटा द्वारा संपादित 'प्राचीन गूर्जर काव्य संचय' काव्यरसिकों और भाषाशास्त्रिओं के अध्ययनार्थ प्रकाशित किया जाता है । गुजरात और राजस्थान के जैन भंडारों में जो साहित्य सुरक्षित हुआ है उसमें संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों को हो स्थान मिला है ऐसा नहीं है किन्तु उनमें आधुनिक गुजराती और राजस्थानी भाषा के पूर्वज साहित्य का भी समावेश है । यह हमारा सौभाग्य है कि आधुनिक भाषा के विकास को स्पष्ट करने के लिए १४ वीं शती से ले कर १९ वीं शती तक लिखे गये ग्रन्थों की उपलब्धि हमें होती है । प्रस्तुत संग्रह में प्रायः १३ वीं शती के विविध प्रकारों की कृतिओं का संग्रह किया गया है । काव्य को दृष्टि से सभी महत्त्व के न भी हों तब भी भाषाशास्त्र के अध्येताओं के लिए तो यह संचय महत्वपूर्ण सिद्ध होगा-इसमें तो संदेह नहीं है । इस संचय में कृतिओं की प्राचीन प्रतों का उपयोग किया गया है । अतएव भाषारूपों के अध्येताओं के लिए एक प्रामाणिक संचय ग्रन्थ का काम यह ग्रन्थ देगा । दोनों सम्पादकों ने इसके संचय और सम्पादन में जो परिश्रम किया है उसके लिए हम उनके आभारी हैं । ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर अहमदाबाद-९ १, जुलाई १९७५ दलसुख मालवणिया अध्यक्ष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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