Book Title: Prachin Gurjar Kavya Sanchay
Author(s): H C Bhayani, Agarchand Nahta
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 13
________________ की लिखी हुई है। छोटे साइजके ४४० पत्रो में दशवैकालिक, पक्खीसूत्त आदि आगम और प्रकरण एवं स्तोत्रादि के साथ अनेकों प्राचीन राजस्थानी विविध प्रकार की रचनाएं हैं । इस प्रति के भी बीच बीच के कई पत्र प्राप्त नहीं हैं । प्रस्तुत ग्रंथ में निम्नोक्त रचनाएं इसी प्रति को दी गई हैं। ९. 'स्थूलिभद्र-मुनि वर्णना-बोली' १. 'भरतेश्वर-बाहुबलि घोर' १०. 'शांतिनाथ-बोलिका' २. 'चंदनबाला-रास' ११. 'वासुपूज्य बोलिका' ३. 'जम्बूस्वामि सत्क वस्तु १२. 'सर्व-जिन-कलश' ४. 'शालिभद्र-रास' १३. 'युगादि-देव-कलश' ५. 'स्थूलिभद्र-रास' १४. 'वीर-जिन-कलश ६. 'धर्म-चच्चरी' १५. महावीर-जन्माभिषेक' ७. 'चच्चरी' १६. 'कृपण-गृहणी-संवाद' ८. 'नेमिनाथ-बोली' १७. 'महावीर-रास' इस प्रति की लेखनप्रशस्ति इस प्रकार हैं:-- संवत् १४३७ वैशाख सुदि २ द्वितीया-दिने सुगुरुश्रीजिनराजसूरि-सदुपदेशेन व्य० देहा पुच्या देवगुर्वाज्ञा चिन्तामणि-विभूषित-मस्तकया मांकू--श्राविकया आत्म-पुण्यार्थ श्रीस्वाध्यायपुस्तिका लेखिता ।। वाच्यमाना आचंद्राक्क नंदतु । छ । ___ इस प्रति में और भी बहुत सी ऐसी रचनाएं हैं जो हमारे नकल की हुई होने पर भी इस ग्रंथ में नहीं दी जा सकी । इस प्रति की कुछ रचनाएं सं. १४९३ वाली प्रति में भी है। ३. तीसरी संग्रहप्रति शिवकुंजर-स्वाध्यायपुस्तिका में से प्रस्तुत ग्रंथ में निम्नोक्त रचनाएँ दी गई हैं। १ 'शील-सन्धि' ३. 'महावीर-रास' २. 'शांतिनाथ-देव-रास' ४. दिघम-शबरी-भास' इस प्रति की लेखनप्रशस्ति नीचे दी जा रही है। मध्यम साइज़ के ५२१ पत्रों की इस प्रति के भी बीच बीच के बहुत से पत्र अप्राप्य है । इस प्रति की बहुत सी ऐतिहासिक रचनाएँ हमने 'ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह' में प्रकाशित की थी जिनकी नामावली उक्त ग्रंथ के प्रतिपरिचय में दो गई है। इस प्रति में 'नगरकोट-तीर्थ-वीनति' आदि कुछ रचनाएँ हम पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित कर चुके हैं । लेखनप्रशस्तिः -॥६०॥ संवत् १४९३ वर्षे वैशाखमासे प्रथमपक्षे ८ दिने सोमे श्रीवृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिगुरौ विजयमाने श्रीकीर्तिरत्नसूरिशिष्येन शिवकुंजरमुनिना निजपुण्याथै स्वाध्यायपुस्तिका लिखिता चिरं नेदतु ।। श्री योगि. नीपुरे ॥ श्री ॥ ४. इस ग्रन्थ में प्रकाशित 'गौतमस्वामी-रास' सं. १४३० की लिखी हुई बीकानेर बडे ज्ञानभंडारस्थ महिमाभक्ति-भण्डार की प्रति से लिया गया है। यह प्रति ६४२१ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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