Book Title: Prachin Gurjar Kavya Sanchay
Author(s): H C Bhayani, Agarchand Nahta
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ कौनसी रचना लिखो हुई थी जो अब नहीं मिलती । उन प्रतियों के वे निकाले हुए पत्र प्रायः इतस्ततः हो गये अतः कई महत्त्वपूर्ण रचनाएं आज हमे प्राप्त नहीं हैं। ऐसी संग्रहप्रतियों को स्वाध्यायपुस्तिका नाम दिया हुआ मिलता है। जिनराजसूरि, जिनभद्रसूरि, जिनवर्धनसूरि, आदि आचार्यों एवं शिवकुंजरादि कई विद्वानों की स्वाध्यायपुस्तिकाएं हमें मिली हैं । खरतरगच्छ के सिवा अन्य गच्छों की भी ऐसी संग्रहात्मक स्वाध्यायपुस्तिकाएं हमारे देखने में आई हैं । स्वाध्यायपुस्तिकाओं में प्राचीनतम स. १२१५ की ताड़पत्रीय प्रति जेसलमेर के ज्ञानभण्डार में हैं । क्रमांक १५४ । ले. स. १२१५ माघ सुदि ४ बुधे पुस्तिका लिखितमिति । छ। श्रीमत् जिनदत्तसरि सिसिण्याः संतिमति गणिन्याः स्वाध्यायपुस्तिका । श्री । प्रस्तुत ग्रंथ में जिन रचनाओं का संग्रह किया गया है, वे अधिकांश उपर्युक्त चारपांच संग्रहप्रतियों में ही लिखी हुई हैं । अतः कौन कौनसी और कबकी लिखी हुई प्रति से कौन कौनसी रचना दी गई है, इसका संक्षिप्त विवरण यहां दिया जा रहा है । १. बीकानेर बड़ा उपाश्रय में खरतरगच्छीय बृहत् ज्ञानभण्डार के अन्तर्गत छोटे बडे नौ संग्रह है जिनमें से अभयसिंह ज्ञानभण्डार की पोथी नं. १६. पोथी नं. २१८ में खरतरगच्छ की आचार्य जिनप्रभसूरि परम्परा को एक प्राचीन संग्रहप्रति है जिसमें प्रतिक्रमण-स्तोत्रादिका संग्रह है । प्राप्त प्रति के बीच बीच के कुछ पत्र नहीं है व अंतिम पत्र प्राप्त नहीं है । यो पत्रसंख्या २५५ पुरानी दी हुई थी उसके बाद पत्रों की संख्या २३० लिखी हुई है । इस प्रति में से 'जिनप्रभसूरि परम्परा गुर्वावली' और 'जिनप्रभसरि गीत' तथा 'जिनदेवसूरि गीत' हमने ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में सं. १९९४ में प्रकाशित किये थे । उसके बाद मुनि जिनविजयजी संपादित 'विधिप्रपा' में हमारे लिखित जिनप्रभसूारे-चरित्र प्रकाशित हुआ था । उसमें भी इस प्रति की कुछ रचनाएं छपी थी। इस प्रति का साइज १५४५ इंच है । अंतिम पत्र में 'वीतरागस्तोत्र' अपूर्ण रह जाता है। इस प्रति में जिनप्रभसूरि परम्परा के आचार्यों के नाम हैं, उनमें जिनप्रभसूरि के पट्टधर जिनदेवसूरि तक के ही नाम हैं । इसकी लिपि भी पुरानी है । अतः लेखन संवत् न होने पर भी यह प्रति सं. १४२०-२५ के आसपास की होनी चाहिए । इस प्रति में से 'आबू रास' के अतिरिक्त 'तत्त्वविचार प्रकरण' नामक गद्य रचना द्रमने 'राजस्थान भारतो' में प्रकाशित की थी तथा 'मदनरेहा रास', 'रस-विलास, चतुष्पदिका', 'अम्बिकादेवी पूर्वभव चरित्र' हमने 'हिन्दी अनुशीलन' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित किए । मुनि जिनविजयजी को प्रति भेजी तो उन्होने “भारतीय विद्या" में 'जीवदया रास' प्रकाशित किया । इस प्रकार समय समय पर इस प्रति की महत्त्वपूर्ण रचना प्रकाशित की जाती रही हैं । प्रस्तुत ग्रंथ में निम्नोक्त रचनाएं इसी प्रति से ली गई हैं। १. 'जीवदया-रास' ४. 'नेमिनाथ-बारहमासा' २. 'आबू-रास' ५. 'अंबिका-देवी-पूर्व-भव-तलहरा' ३. 'नवकार-रास' ६. 'प्रकीर्ण दोहा' २. दुसरी संग्रहप्रति, जिसकी रचनाएं इस ग्रंथ में दी गई हैं, वह जेसलमेर बड़ा उपाश्रय के पंचायती भण्डार की प्रति है । यह जिनराजसूरि स्वाध्यायपुस्तिका सं. १४३७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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