Book Title: Prabandh Parijat Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 9
________________ क्रम सं. चार कुवलयप्रभ आचार्य की स्पष्ट वाणी उत्प्रव्रजित होने के पहले रजोहरण गुरु को अर्पण करना चाहिये मत्स्यबंधक और व्रत भंजक मैथुन के पाप की भयंकरता भिन्न २ अपराधों की शिक्षा ३ पर्युषणा-कल्प और इसकी टीकाएँ कल्पसूत्र के अन्तर्वाच्य और टीकाओं की अर्वाचीनता ( १ ) मुद्रित कल्पान्तर्वाच्य ( २ ) द्वितीय कल्पान्तर्वाच्य ( ३ ) तीसरा कल्पान्तर्वाच्य ( ४ ) सन्देह विषौषधि नामक कल्प पंजिका कल्प किरणावली ( ५ ) (६) कल्पसूत्र - प्रदीपिकावृत्ति- पं. संघविजय कृता (७) कल्प दीपिका पं. जयविजय जी कृता ( ८ ) कल्प प्रदीपिका - कर्ता श्री संघविजय जी श्री कल्प सुबोधिका टीका - विनय विजयोपाध्याय ( ६ ) कृता (१०) श्री कल्प कौमुदी टीका - ले० उपाध्याय शान्ति सागरजी (११) कल्प व्याख्यान पद्धति (११) कल्पद्रुम - कलिका उपसंहार ४ मौलिक व्याकरण साहित्य अष्टाध्यायी सूत्र पाठ पाणिनीय सूत्र वृत्ति काशिका - कर्ता वामन और जयादित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only पृष्ठ सं. १४० १४१ १४१ १४१ १४२ १४३ १४५ १४५ १४६ १४८ १५१ १५८ १६२ १६८ १७३ १७३ १७७ १८० १८३ १६३ १६५ १६८ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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