Book Title: Prabandh Parijat
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 10
________________ पांच पृष्ठ सं. १६६ २०३ २०६ २१० २११ २१४ २१६ २२० २२१ २२१ क्रम सं. पाणिनीय सूत्राष्टाध्यायी एवं पातञ्जल महाभाष्य अष्टाध्यायी सूत्र पाठ वाक्यपदीय श्री भर्तृहरिकृत स्फोट नाद के सम्बन्ध में वैयाकरणों का मंतव्य वैखरी आदिचार भाषाओं का वर्णन जैनेन्द्र व्याकरण-महावृत्ति दोनों मूल ग्रन्थों के सूत्रों का मिलान ने टीकाओं के सूत्र क्रम, महावृत्ति और शब्दार्णव महावृत्ति तथा शब्दार्णव के पांचों अध्यायों की सूत्र संख्या महावृत्ति की सवातिक सूत्र संख्या शाकटायन व्याकरण शाकटायन व्याकरण चिंतामणो टीका सहित पौर्वा-पर्य चौदहवीं शती के वैष्णव कवि बोपदेव के ८ वैयाकरण कलाप व्याकरण (कातन्त्र-व्याकरण) चान्द्रव्याकरण (पूर्वार्ध-कर्ता आचार्य चन्द्रगोमी सिद्धहेम शब्दानु शासन -- आचार्य हेमचन्द्र हेम शब्दानुशासन में स्मृत ग्रन्थकार प्राकृत लग - कवि चंडकृत षड्भाषा-चन्द्रिका - ले० लक्ष्मीधर ५ (१) प्राचीन जैन तीर्थ उपक्रम सूत्रोक्त तीर्थ (१) अष्टापद २२६ ० २३६ २३८ २४४ २४८ २५२२ २५३ २५४ २५५ २६६ २५६ २५८ २५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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