Book Title: Prabandh Parijat Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 4
________________ "प्रास्ताविक दो शब्द" "प्रधन्ध पारिजात" पाँच प्रबन्धों का संग्रह है, इसमें १ निशीथ २ महानिशीथ, ३ पर्युषणाकल्पटीका, ४ मौलिक व्याकरण साहित्य और ५ प्राचीन जैन तीर्थ, ये पाँच प्रबन्ध संगृहीत हैं पंचम "प्राचीनजन तीर्थं" प्रबन्ध तीन विभागों में विभक्त है, प्रथम विभाग में सूत्रोक्त १० जैन तीर्थो का ऐतिहासिक निरुपण है, दूसरे विभाग में आबू तीर्थं की यात्राओं के संस्मरण और तोसरे विभाग में आबू के जैन तीर्थो से समबन्ध रखने वाले लेखों का संपूर्ण संग्रह दिया है, इस लेख संग्रह में सर्व मिलकर ४०५ लेख हैं जिनमें कतिपय बड़ी प्रशस्तियाँ भी सम्मिलित हैं जो जैन इतिहास के लिये ही नहीं चन्द्रा वती के परमारों, चौलुक्यों, सिरोही के देवडों आदि राजाओं के इतिहास जानने और मंत्री विमल, मंत्री वस्तुपाल तेजपाल तथा आबू के जेन मदिरों के जीर्णोद्धार कराने वाले सदगृहस्थों की वंशावलियों का ज्ञान कराने में यह लेख संग्रह परम उपयोगी है। एक दो के अतिरिक्त ये सभी लेख हमने स्वयं पढकर लिये हैं। इस प्रकार इस मंग्रह के प्राथमिक ३ प्रबन्ध, साहित्यसमालोचनात्मक हैं, तब अन्तिम दो प्रबस्ध ऐतिहासिक हैं यह बात पाठकगण स्वयं समझ सकते हैं । साहित्य और इतिहास की मीमांसा में टीका टिप्पणी अनिवार्य होती है, इस स्थिति में आलोचना में होने वाली टीका टिप्पणो को पढकर पाठकों को, बुरा न मानकर वास्तविकता का स्वीकार करना चाहिये । जिन पाठकों के विचार विमर्श जिज्ञासा मार्ग में चलने के अभ्यासी हैं वे इन प्रवन्धों में बहुत कुछ नवीनता पायेगे , पर जिनके ज्ञान तन्तु पूर्वबद्ध विचारों से भरे हुए होंगे वे इन प्रबन्धों का सारांश नहीं पायेंगे यह बात लेखक के ध्यान बाहर नहीं है, फिर भी जो पाठक इतिहास और समीक्षा का महत्व समझते हैं उनके लिये तो प्रस्तुत प्रबन्ध संग्रह रसप्रद ही नहीं मार्ग दर्शक भी अवश्य होगा ऐसा लेखक को पूर्ण विश्वास है। कल्याणविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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