Book Title: Patanjal yoga aur Jain Yoga Ek Tulnatmaka Vivechan Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 3
________________ पंचम खण्ड /८ अर्चनार्चन पांचवीं शताब्दी का अन्त माना है।' डॉ० राधाकृष्णन् ने उनका प्राचीनतम समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी माना है। पतंजलि ने "योगसूत्र" नामक ग्रन्थ लिखा था। इसके प्रथम सत्र "अथ योगानुशासनम्" में पाये हुए.---"अनुशासन' शब्द से विद्वानों ने निष्कर्ष निकाला है कि पतंजलि योग के प्रवर्तक नहीं हैं। उन्होंने अपने पूर्व प्रतिष्ठित योग-सिद्धान्त का परम्परागत अनुसरण कर उसमें संशोधन कर व्यवस्थित किया और उपदेश दिया है । ३ बलदेव उपाध्याय ने लिखा भी है-"पतंजलि ने योग का केवल अनुशासन किया, अर्थात प्रतिपादित शास्त्र का उपदेश मात्र दिया है । अतः वे योग के प्रवर्तक न होकर प्रचारक या संशोधक मात्र हैं। अनुशासन का अर्थ है-उपदेश दिये गये सिद्धांत का प्रतिपादन । पतंजलि ने यह किया है।"४ इससे सिद्ध है कि पतंजलि के पूर्व भी भारत में योग-साधना के बीज मौजूद थे। अब प्रश्न होता है कि यदि भगवान् पतंजलि योग के उद्भावक नहीं थे तो उनसे पहले किसने योग का आविष्कार किया ? जिसका अनुशासन पतंजलि ने किया है। बलदेव उपाध्याय, नगेन्द्रनाथ उपाध्याय प्रभ ति विद्वानों ने याज्ञवल्क्य-स्मृति का हवाला देते हुए हिरण्यगर्भ को योग का पुरस्कर्ता माना है। इनका उपदेश प्रतिपादक शास्त्र "हिरण्यगर्भ योग" के नाम से प्रसिद्ध है। पण्डित सुखलाल संघवी ने हिरण्यगर्भ और उनके योग-सिद्धांत को नि:शंक रूप से प्राचीन और पतंजलि से पूर्व सांख्यावलम्बी योग माना है। लेकिन उनको योग-सिद्धांत का आविष्कर्ता नहीं माना है। एक विचारणीय बात यह भी है कि तथाकथित योग के वक्ता हिरण्यगर्भ कौन हैं ? 'महाभारत' में कृष्ण अपने को हिरण्यगर्भ कहते हुए योगियों द्वारा पूजित बतलाते हैं। यदि स्मृतियों के आधार पर हिरण्यगर्भ को योग का पुरस्कर्ता मान लिया जाय तो प्रश्न यह उठता है कि उपनिषदों और वेदों में इनके नाम का उल्लेख योग के प्रवक्ता के रूप में क्यों नहीं मिलता है। यद्यपि वहाँ यौगिक साधना के बीज यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं ? भगवान ऋषभदेव का उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। 'ऋग्वेद' प्राचीनतम ग्रन्थ है। प्रतः निश्चित है कि भगवान् ऋषभदेव ही योग के पुरस्कर्ता थे। इनकी योगसाधना का विवेचन प्रथमानुयोग से सम्बन्धित जैन वाङमय में उपलब्ध है। दूसरी बात यह है कि खजुराहो के संग्रहालय में भगवान् ऋषभदेव की योग अवस्था में मूर्ति है। इससे भी सिद्ध है कि भगवान् ऋषभ ही योग के पुरस्कर्ता थे । १. एम. हिरियन्ना, भा. द. रू. पृष्ठ २६९ और उसकी पादटिप्पणी २. डॉ० राधाकृष्णन् , इंडियन फिलासफी भाग २, पृष्ठ ३४१ का पादटिप्पण ३. माधवाचार्य, सर्वदर्शनसंग्रह पृष्ठ १२६ ४. बलदेव उपाध्याय, भा. द.पृष्ठ २८५-२८६ ५. (क) हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः। -सांख्ययोगदर्शन पृष्ठ १ (ख) बलदेव उपाध्याय, भा. द. पृष्ठ २८५ (ग) नगेन्द्रनाथ उपाध्याय, तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य पृष्ठ ८ ६. समदर्शी प्रा. हरिभद्र (गुजराती संस्करण) पृष्ठ ६८-६९ ७. हिरण्यगर्भो द्युतिमान् य एषच्छन्दसि स्तुतः । योगैः सम्पूज्यते नित्यं स एवाहं भुवि स्मृतः ।। .-महाभारत, शांतिपर्व २४२।९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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