Book Title: Parshvanatha Charita Mahakavya
Author(s): Padmasundar, Kshama Munshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 8
________________ उपोद्घात गुजरात युनिवर्सिटी की पीएच. डी. की उपाधि के लिए मैने अप्रकाशित कृति का संपादन किया है । १६ वीं सदी के सुप्रसिद्ध जैन कवि श्री पद्मसुन्दरसूरि की अप्रकाशित कृति श्री पाश्वनाथ महाकाव्य का संशोधित संपादन, प्राचीन हस्तलिखित दो प्रतियों की सहायता से तैयार किया गया है । प्रस्तुत महाकाव्य सात सगों में विभक्त, लगभग १००० श्लोकों में लिखा सरल संस्कृत भाषा में निबद्ध महाकाव्य है । इस काव्य में जैनों के तेइसवें तीर्थकर पार्थ के अन्तिम दस भवों की कथा आई है । हस्तप्रतों के आधार पर महाकाव्य का प्रथम संपादन किया गया है । साथ में संपूर्ण महाकाव्य का हिन्दी में सरल अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया है । कवि श्री पद्मसुन्दर के विषय में जो भी सामग्री विभिन्न ग्रन्थों एवं उनकी स्वयं की कृतियों से प्राप्त हो सकी है उसे प्रस्तावना में रखा गया है और उसके साथ ही साथ कवि की प्राप्य समस्त प्रकाशित एवं अप्रकाशित कृतियों का परिचय भी दिया गया है। प्रस्तावना में प्रस्तुत महाकाव्य का आलोचनात्मक अध्ययन विस्तार से किया गया है। इसमें काव्य दृष्टि से काव्य की विवेचना करते समय संस्कृत साहित्य के सभी मूर्धन्य कवियों की कृतियों को दृष्टि में रखते हुए स्थान स्थान पर तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है । यहाँ मेरी चेष्टा यही रही कि मैं इस प्रस्तुत काव्य में से भी काफी कुछ उतनी ही साहित्यिक सामग्री निकाल सकूँ जितनी हम आज तक कविश्रेष्ठ कालिदास, श्रीहर्ष, माघ एवं भारवि आदि कवि की कृतियों में से पढ़ते आये है। बाद में पाव के जीवन से संबंधित सामग्री को प्रस्तुत करने के लिए जैनों के प्रमुख १२ आगमों में से पार्श्व-सामग्री का संकलन कर अध्ययन प्रस्तुत किया है । यहाँ पाश्वर मे धित जानकारी को एकत्रित करने के लिए आगम, पुराण एवं पुराणेतर मंथों को सो सवा है। तत्पश्चात मैंने पाव के बारे में ऐतिहासिक दृष्टिकोण क्या रहा है उसकी पर्याप्त चर्चा की है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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