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अन्त में परिशिष्ट विभाग के अन्तर्गत, काम्य में आये सभी अलंकारों एवं छन्दों का वर्गीकरण दिया है, साथ ही पाठान्तर भी ।
- मेरा यह कार्य अप्रकाशित ग्रंथ का संपादन होने से संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में एक नया प्रदान है, यह कहने की आवश्यकता नहीं रहती । इसके साथ ही इस कृति को प्रस्तुत करने में मैंने जो अध्ययन किया है वह इस काव्यग्रंथ को समझने में बहुत ही सहायक सिद्ध होगा, यह निश्चित है । साधारण पाठक अथवा कोई भी संस्कृत जिज्ञासु इस महाकाव्य का निर्विधन पाठ कर सके इसके लिए मैं ने सम्पूर्ण काव्य का सरल हिन्दी में अनुवाद भी प्रस्तुत किया है ।
. जयपुर युनिवर्सिटी से संस्कृत साहित्य में एम. ए. (१९६९) करने के पश्चात् अहमदाबाद की ला. द. विद्यामंदिर संस्था में पीएच. डी. के लिए कार्य करना (१९७०) प्रारम्भ किया । हस्तलिखित प्रति का अध्ययन और संपादन, यह मेरे लिए बड़ा ही नया कौतुकमय अनुभव रहा है । अपने इस कार्य को पूर्ण करने में मुझे अपने गुरु डॉ श्री नगीनभाई शाह से पद-पद पर मदद प्राप्त हुई है । उन्हीं के अत्यन्त प्रेरणादायी मार्गदर्शन में मैं अपना कार्य सुचारु रूप से पूर्ण कर पाई हूँ । प. श्री दलसुखभाई मालवाणियाजी के प्रति में अपना विनम्र आभार प्रदर्शित करती हूँ जिनके संचालन में मुझे इस संस्था में सभी सुविधाएँ प्राम हुई और जिन्होंने अपना अमूल्य समय मेरे संशोधनकार्य को देखने-सुधारने में खर्च किया । इसके साथ ही ला. द. विद्यामंदिर के समस्त कार्यकर्ताओं के प्रति मैं आभारी हूँ, उन सभी की सहायता मुझे हुई है। विद्यामंदिर के व्यवस्थापकों ने मेरा यह संपादन ला. द. ग्रन्थमाला में प्रकाशित किया इस लिये उनके प्रति मेरा आभार प्रदर्शित करती हूँ ।
२ अप्रैल, १९८६
क्षमा मुन्शी
अहमदाबाद
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