Book Title: Parshvanatha Charita Mahakavya
Author(s): Padmasundar, Kshama Munshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 6
________________ प्रधान संपादकीय अकबर बादशाह के विद्वमंडल में प्रतिष्ठित जैन कवि पद्मसुन्दरसूरि की अद्यावधि अप्रकाशित संस्कृत कृति पार्श्वनाथचरित महाकाव्य को प्रकाशित करते हुए ला. द. विद्यामंदिर को बड़ा ही हर्ष हो रहा है । पार्श्वनाथ जैनों के २३ वें तीर्थकर है जो भगवान महावीर से २५० वर्ष पूर्व हुए । इतिहासकारों ने उनकी ऐतिहासिकता का स्वीकार कया है । प्रस्तुत महाकाव्य में पार्श्वनाथ के अन्तिम दस भवों का काव्यमय वर्णन है । यह महाकाव्य सात सर्गों में विभक्त है । डॉ. क्षमा मुन्शी ने बड़े ही परिश्रम से इस महाकाव्य का संपादन किया है और साथ में ही हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है । क्षमाजी ने अध्ययनपूर्ण विस्तृत प्रस्तावना में पद्मसुन्दरसूरि के जीवन और कृतियों का परिचय दिया है, पार्श्वनाथचरित महाकाव्य का अनेक दृष्टि से मूल्यांकन किया है, पार्श्वनाथ के जीवन की सामग्री का जैन आगम, जैन पुराण और अन्य जैन ग्रन्थों में से चयन किया है और पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता के बारे में आधुनिक विद्वानों की क्या राय है यह दिखाया है । छन्द, अलंकार और पाठान्तर विषयक तीन परिशिष्ट भी उन्होंने जोडे हैं । क्षमाजी ने प्रस्तावना के साथ अपना यह संपादन ला. द. ग्रंथमाला में प्रकाशित करने की अनुमति दी इसलिए ला. द. विद्यामंदिर की ओर से उन्हें अनेकशः धन्यवाद । संस्कृत साहित्य के अध्येताओं और विद्वानों इस नये संपादन को पढ़कर लाभान्वित और संतुष्ट हो ऐसी आशा रखता हूँ । ला. द. विद्यामंदिर अहमदाबाद-३८०००९ १५ अप्रैल १९८६ नगीन जी. शाह कार्यकारी अध्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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