Book Title: Paramarsh Jain Darshan Visheshank Author(s): Publisher: Savitribai Fule Pune Vishva Vidyalay View full book textPage 3
________________ सम्पादकीय इस वर्ष परामर्श (हिन्दी) के नये सम्पादक मण्डल का गठन किया गया है। हमारा प्रयास रहेगा कि पूर्व की भांति आगे भी पत्रिका में दर्शन विषय के गुणवत्तापूर्ण एवं मौलिक लेखों का प्रकाशन निर्बाध गति से होता रहे। पत्रिका को अद्यतन करने के उद्देश्य से इसके पिछले अंकों को संयुक्त रूप से प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है। इसी क्रम में वर्तमान अंक 'जैन दर्शन विशेषांक' के रूप में प्रस्तुत है। भारत की प्राचीन सभ्यता का सबसे महत्त्वपूर्ण पहचान बिन्दु है इसकी दर्शन परम्परा। कालक्रम में विकसित हुई यह दर्शन परम्परा भारतीय संस्कृति की विविधता की परिचायक है। इस परम्परा में विभिन्न दर्शन समूहों का विकास हुआ। सैद्धांतिक मत विभाजन होते हुये भी इन समूहों का अनवरत गतिमान सह अस्तित्व ही भारतीय संस्कृति को अनूठा बनाता है। यहाँ विशेषकर जैन दार्शनिक चिंतन उल्लेखनीय है जो सत् व ज्ञान का बहुलवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और जिसकी परिणति व्यवहार के स्तर पर सर्वसमावेशी बहुलवादी सांस्कृतिक सहअस्तित्व में होती है। वर्तमान विश्व में राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय संकटों को देखते हुये जैन दर्शन की तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा एवं आचारमीमांसा और भी प्रासंगिक लगती है। जैन दर्शन के इन्हीं विविध पहलुओं को एक साथ रखने के उद्देश्य से पत्रिका का यह अंक 'जैन दर्शन विशेषांक' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि इसे पर्याप्त एवं पूर्ण कहना उचित न होगा, फिर भी आशा है कि यह अंक शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं सामान्य पाठकों के लिये उपयोगी सिद्ध होगा। प्रधान सम्पादकPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 172