Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

Previous | Next

Page 10
________________ कन्यां तामपि दुर्गन्धां वृतां बन्धुभिरप्रजः । परित्यज्य प्रवव्राज सुव्रतः सुव्रतान्तिके । कनीयान् जिनदत्तस्तां बन्धुवाक्योपरोधनः (तः)। परिणीयापि तत्याज दुर्गन्धामतिदूरतः ।। ह. पु. स. ६४; १२०-२१ उ. पु. पर्व ७२ श्लोक २४५ से २४८ पर्यंतके श्लोकोंमें भी यही आशय है अतः इन दोनों आचार्योंके अनुसार पाण्डवपुराणकारने भी वैसाही उल्लेख कर सुकुमारिकाके साथ विवाहके प्रस्तावसे विरक्त होकर जिनदेवके दीक्षित होने तथा जिनदत्तके साथ उसके विवाह होनेका उल्लेख किया है। [ देखिये पर्व २४ श्लोक २४-४३ ] इसके अतिरिक्त प्रस्तुत पुराणमें कुछ ऐसे पद्य भी पाये जाते हैं जो हरिवंश पुराणके पद्योंसे अत्यन्त प्रभावित हैं । यथाततस्ते दाक्षिणान् देशान् विहृत्य हस्तिनं पुरम् । गन्तुं समुद्यताश्वासन भुञ्जन्तो धर्मजं फलम् ॥ क्रमान्मार्गवशात्प्रापुर्माकन्दी नगरी नृपाः । स्वःपुरीमिव देवौधा बुधसीमन्तिनीश्रिताम् ।। पां. पु. स. १५, ३६-१७ विहृत्य विविधान् देशान् दक्षिणात्यान् महोदयाः । ते हस्तिनपुरं गन्तुं प्रवृत्ताः पाण्डुनन्दनाः ॥ प्राप्ता मार्गवशाद् विश्वे माकन्दी नगरी दिवः । प्रतिच्छंदस्थितिं दिव्यां दधाना देवविभ्रमाः ।। ह. पु. स. ४५, ११९-१२० इनके अतिरिक्त निम्नांकित श्लोकोंकाभी मिलान किया जा सकता है ह. पु. सर्ग ४५ १२७२९ १३२ १३५-३९ ५४,५७-६० पाण्डवपु. प. १५ । ५४ । ६६-६८ ११२-१६ २२, ८-११ आदिपुराण व उत्तरपुराण हरिवंशपुराणके कुछही कालके पश्चात् जिनसेनाचार्य [हरिवंशपुराणकारसे भिन्न ] के द्वारा आदिपुराणकी (४२ पर्वतक) और उनके शिष्य गुणभद्रके द्वारा वि. सं. ९५५ में उत्तरपुराण (४३-४७ पर्व आ. पु. की भी ) की रचना हुई । आदिपुराणमें भगवान् ऋषभ देवका तथा उत्तरपुराणमें शेष २३ तीर्थंकरों, भरतको छोड़ शेष ग्यारह चक्रवर्तियों, नौ नारायणों, नौ प्रतिनारायणों और नौ बलभद्रोंके चरित्रका वर्णन किया गया है । आदिपुराणके अन्तिम ५ पर्वोमें जो भरतचक्रवर्तीके सेनापति जयकुमारके चरित्रका वर्णन है वह जिनसेनाचार्यके स्वर्गस्थ हो जानेसे गुणभद्रके द्वारा पूर्ण किया गया है । भट्टारक शुभचन्द्रने यथाप्रसङ्ग इन दोनों ग्रन्थोंकाभी सदुपयोग किया है। उदाहरणार्थ, शुभचन्द्रने प्रस्तुत पुराणमें पाण्डु राजाकी सल्लेखनाका जो वर्णन किया है उसका आधार आदिपुराणान्तर्गत महाबलकी सल्लेखनाका प्रकरण रहा है । इसके लिये आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 576