Book Title: Pandava Puranam Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh SolapurPage 17
________________ (१२) पिताकी यह अवस्था देखकर गांगेय बहुत व्याकुल हुए। वे सोचने लगे कि पिताकी ऐसी अवस्था होने का क्या कारण है ? क्या मेरे द्वारा कभी उनकी विनयका या आज्ञाका उल्लंघन हुआ है ? अथवा उन्हें माताजीका स्मरण हो आया है ? इस प्रकार चिन्तातुर होकर उन्होंने एकान्तमें मन्त्रीजीसे पूछ-ताछ की । उनसे उन्हें यथार्थ परिस्थिति ज्ञात हो गई। गांगेयकी भीष्मप्रतिज्ञा अब वे सीधे नाविकके घर जा पहुंचे। उन्होंने धीवरसे कहा कि तुमने राजाका अपमान किया, यह अच्छा नहीं हुआ । धीवर प्रसन्नतासे बोला कि, हे कुमार ! इसका कारण सुनिये । तुम जैसे पराक्रमी सापत्न-पुत्रके होते हुए मैं राजाके लिये अपनी कन्या देकर उसे जान-पूछकर अन्धकूपमें नहीं पटकना चाहता । भला तुमही बताओ कि भविष्यमें मेरी पुत्रीको जो पुत्र होगा वह क्या राज्यैश्वर्यको भोग सकता है ? राज्यैश्वर्य तो दूर रहा, किन्तु वह तो सदा आपत्तियोंसे घिरा रहेगा। राज्यलक्ष्मी तुम जैसे गुणवान पराक्रमी पुत्रको छोड़कर अन्यके पास जानेको उत्सुक नहीं हो सकती । यह सुनकर गांगेय बोले कि हे मातामह ! यह आपका विचार भ्रमपूर्ण है, कलहंस और बगुला कभी एक नहीं हो सकते । मैं गुणवतीको अपनी जन्मदात्री माता गंगासेभी अधिक बढ़कर माता समझूगा । सुनो, मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि गुणवतीसे जो पुत्र होगा, उसेही राज्य दिया जायेगा, अन्यको नहीं । इतनेपरभी धीवरको सन्तोष नहीं हुआ । वह बोला कि स्वामिन् ! यह आपका कहना ठीक है । परन्तु भविष्यमें जो आपके तेजस्वी पुत्र होंगे वे क्या इसे सहन कर सकेंगे ? कभी नहीं । इसे सुनकर गांगेयने कहा कि तुम्हारी इस चिन्ताकोभी मैं अभी दूर कर देता हूं। हे मातामह ! आप सुनिये तथा आकाशमें सिद्ध, गन्धर्व और विद्याधर जनभी इस बातको सुनलें कि मैं यावज्जीवन ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण करता हूं। इससे धीवरको अपूर्व सन्तोष हुआ । उसने गांगेयकी अत्यधिक प्रशंसा की। साथही उसने गुणवतीका जन्मवृत्तान्तभी इस प्रकार बतलाया । हे कुमार ! मैं एक समय विश्रामके लिये यमुनाके किनारेपर गया था। वहां मैंने अशोक वृक्षके नीचे किसी पापीके द्वारा छोडी गई तत्काल उत्पन्न हुई कन्याको देखा । मैं निःसन्तान था, अतः उस सुन्दर कन्याको उठानेके लिये प्रवृत्त हो गया। उस समय मुझे यह आकाशवाणी सुनाई दी- " रत्नपुरमें स्थित रत्नांगद राजाकी रानी रत्नवतीकी कुक्षिसे उत्पन्न हुई इस कन्याको पिताके वैरी विद्याधरने अपहरण कर यहां छोड़ दिया है " इसको सुनकर मैंने उसे उठा लिया और अपनी निःसन्तान पत्नीको दे दिया । उसका मैने गुणवती नाम रक्खा । वह मेरी कृत्रिम पुत्री है। अब आप इसे अपने पिताके लिये स्वीकार करें । इस प्रकार वह पराशर राजाकी सहचारिणी बन गई। १ यह कथानक देवभप्रसूरिके पाण्डवचरित्रमेभी इसी प्रकारसे पाया जाता है । विशेषता यह है कि यहां पराशरके स्थानमें शान्तनुका उल्लेख है, तथा गुणवती कन्याका नाम सत्यवती पाया जाता है । शेष कथाभाग समानहीं नहीं है, प्रत्युत अनेक श्लोकभी इस प्रसंगके दोनों ग्रन्थोंमें समानरूपसे पाये जाते हैं ( देखिये दे. प्र. पां. च. सर्ग १ श्लोक १५८-२४७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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