Book Title: Pandava Puranam Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh SolapurPage 16
________________ (११) किसी समय राजा पराशर मनोविनोदके लिये यमुनातटपर गये। वहां उन्होंने नावपर बैठी हुई एक सुन्दर कन्याको देखा । उसे देखतेही उनका मन उसकी ओर आकृष्ट हो गया। वे कामके वश होकर उसके पास पहुंचे और पूछा कि तू कौन है व किसकी कन्या है ? उसने उत्तरमें कहा कि हे राजन् ! मैं नाविकोंके अधिपतिकी गुणवती नामकी कन्या हूं । पिताकी आज्ञानुसार मैं जलमें शीघ्रतासे नाव चलाती हूं। उक्त कन्याकी प्राप्तिकी अभिलाषासे राजा पराशर शीघ्रही उसके पिताके पास जा पहुंचे । धीवरने उनका यथोचित स्वागत किया। राजाने उससे कहा कि तेरी पुत्री गुणवती मेरी सहचारिणी हो, यह हार्दिक अभिलाषा है। यह सुनकर धीवर बोला कि राजन् ! मैं अपनी कन्या आपके लिये नहीं देना चाहता । कारण इसका यह है कि आपका गांगेय नामका पराक्रमी पुत्र राज्यके लिये योग्य है । उसके होते हुए भविष्यमें होनेवाला मेरी पुत्रीका पुत्र भला कैसे राज्यका भोक्ता हो सकता है ? अतएव हे महाराज ! इस चर्चाको यहीं समाप्त कर दीजिये। इस प्रकार नाविककेद्वारा निषेध कर देनेपर राजा खिन्न होकर राजभवन लौट गया । अभिलाषा पूर्ण न होनेसे उसकी वह चिन्ता बढतीही गई । इससे उसके मुखकी कान्ति फीकी पड़ गई थी। ३ उग्रसेन और ४ भीमसेन, ये चार पुत्र थे। जलुके पुत्रका नाम सुरथ था। सुरथके विदूरथ, विदूरथके सार्वभौम, सार्वभौमके जयत्सेन, जयत्सेनके आराधित, आराधितके अयुतायु, अयुतायुके अक्रोधन, अक्रोधनके देवातिथि, देवातिथिके ऋक्ष, ऋक्षके भीमसेन, भीमसेनके दिलीप, और दिलीपके प्रतीप नामक पुत्र हुआ। प्रतीपके देवापि, शान्तनु और बाहूलीक नामके तीन पुत्र थे । इनमें शान्तनु मध्यम पुत्र था [४, २०, १-९]। इसमें आगे [सर्ग १ श्लोक २१-१५७] शान्तनुकी मृगयाव्यसनपरता, जलु विद्याधरकी पुत्री गंगाके साथ विवाह, गांगेयका जन्म, गंगा द्वारा मृगया छोडनेकी विज्ञप्ति, उसे न स्वीकार करनेसे शान्तनुको छोड़कर गांगेयके साथ गंगाका अपने पिताके घर जाना, शान्तनुका चौबीस वर्षतक पत्नी व पुत्रसे वियोग, मृगयावश शान्तनुका गांगेयके साथ युद्ध तथा गंगा द्वारा पिता-पुत्रका परिचय आदिका विस्तृत कथन पाया जाता है । (दे. प्र. पां. च. सर्ग १ श्लोक २१ से १२३ पर्यन्त ) ६ उत्तरपुराण [७०-१०२] में शक्ति नामक राजाकी पत्नीका नाम शतकी बतलाया गया है । इन दोनोंके परासर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विष्णुपुराणके अनुसार तेइसवें व्यासके पीछे वाल्मीकि नामसे प्रसिद्ध भृगुवंशी ऋक्ष व्यास हुए । तत्पश्वात् शक्ति, व्यास और फिर उनके पुत्र पराशर, व्यास हुए ( ३, ३, १८,)। ७ भीष्मोऽपि शान्तनोरेव सन्ताने रुक्मिणः पिता । यस्य गंगाभिधा माता राजपुत्री पवित्रधीः ॥ ___ ह. पु. ४५-३५ देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवचरित्रके अनुसार जगु विद्याधर राजाकी पुत्री गंगाके साथ शान्तनु राजाका विवाह हुआ था। उन दोनोंका पुत्र गांगेय नामसे प्रसिद्ध हुआ (सर्ग १, श्लोक ३४, ५२ और ६०)। ८ नृपोऽथ सूनवे तस्मै यौवराज्यपदं ददौ । योग्यं सुतं वा शिष्यं वा नयन्ति गुरवः श्रियम् ।। यह श्लोक प्रस्तुत पाण्डवपुराण ( ७-८२ ) और देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवचरित्र (१-१५५ ) में समान रूपसे पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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