Book Title: Panchlingi Prakaranam
Author(s): Jineshwarsuri
Publisher: Pitambar Panna Shreshthi
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CARSANSAR
॥ अहम् ॥ (ग्रन्थाङ्कः ॥१०॥)
श्रीस्थम्भनकपार्श्वनाथस्वामिभ्यो नमः । शुद्धजिनमार्गप्रदर्शकचैत्यवासिनिराकरणदक्षश्रीमहुर्लभराजप्रदत्तखरतरविरुदधारक
श्रीमजिनेश्वरसूरिविरचितम् ॥ पञ्चलिङ्गीप्रकरणम् ॥
oooooश्रीमजिनचन्द्रसूरिपदाम्भोजविकसनदिनकरश्रीसिद्धान्तसिन्धुश्रीमज्जिनपतिसूरि
___ संदर्भितबृहद्वृत्तिसहितम् ॥ .
उपाध्यायश्रीजिनपालगणिकृतटीप्पनकसंवलितम् ॥ अस्याशोकस्य मैत्र्या सततमधिगताशोकताहो मया, तयूयं तां शाश्वतीं चाभिलषथ तदा सर्वदोपाध्वमेनम् ॥ इत्युच्चैमझुगुञ्जभसलकुलरवैराह्वयत्यञ्जसेवाशोको लोकान् यदुवं प्रथयतु स नृणां मङ्गलं वर्धमानः ॥१॥ अन्तःसंस्थितवाणिपाणिकलितव्यालोललीलाम्बुजप्रश्श्योतन्मकरन्दबिन्दुपटलीसेकातिरेकादिव ॥
पंचलिं.
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