Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 6
________________ (5) आश्रयाने 'द्रव्यकल्प' आ शब्द उपर बे भाष्य रचायां छे 1 लघुपंचकल्पभाष्य 2 बृहत्पंचकल्पभाष्य. माहीती- लघुपंचकल्पभाष्य ए कोई स्वतंत्रकृति जणाती नथी. परंतु बृद्भाष्यमांनो उद्धृत संक्षिप्त भाग जणाय छे. 184 गाथात्मक लघुभाष्यनी एक प्रति श्री जैनानंदपुस्तकालय सुरतमां छे. तेमांनी 84 गाथाओ छे तेनो आ बृहद्भाष्यमा समावेश था जाय छ. प्रस्तावनाने अंते 184 गाथाओनो बृद्भाष्यांतर्गत क्रमांक जणाकोश. ते उपरथी ख्याल आवा शकशे. बृहद्भाष्यनी 2674 गाथा छ श्लोकात्मक ग्रंथान 3928 छे. जैनानंदपुस्तकालय सुरतनी एक प्रति अनुसार 2175 ग्रंथान छ. श्रुतदेवीनी स्तुतियुक्त एक गाथा घणी प्रतोमा बेल्ल जोवा मल छे. पंचकल्पनुं प्रमाण 1633 छे. आ टीपनकमा पंचकला सूत्र मूल अने भाष्य बंने अलग जणावाया ले. परंतु खरखर आम नथी बंने एक छे. भाष्यकार संघदासगणि 2572 श्लो. 3035 तया चूर्णी 3000 / 3136 नुं जणावायुं छे. विषय- मुनि जीवन ए कठीन साधनानी भूमिका छे. अनादिकालीन विषयवासनाथी विरुद्ध संयमजीवननी अवस्था घडाएली छे. संयम साधनानी पगदंसीए पग मांडना आत्माने रस्ताला भोगादि पुष्पानी सुकोमलता प्राप्त थती नथी. प्राप्त थाय छ विघ्न-परिवह रूप कंटकनी तीक्ष्णता. कर्मसत्ता पण तेनी साम पडे छ, अने दरेकरीते ते मागथी पाछा हठाववानो प्रयास कर छ. अनेक जातना प्रलोभनो तनी सामे मूके छे. आवा समये सयमजीवनमां दृढ रहेवू ने आगल वधवं मुश्केल बनी जाय छ. आ वधानी सामे जो मुनित्व स्वीकारनार व्यक्ति दृढ होय योग्य होय तो स्वीकार्या बाद पोताना कल्पो-आचारोनुं मान मेळवे अने तेमां-पालनमां सजाग बने उत्सर्ग- अपवादने

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