Book Title: Panchkappabhasam Author(s): Labhsagar Publisher: Agamoddharak Granthmala View full book textPage 7
________________ गुरुनिश्राए समजे, अपवादना अवसरे अपवादनुं आचरण करी प्रभु आज्ञामां स्थिर रही आत्मकल्याणमां उद्यत बने. प्रस्तुत आष्यमां पण आ हाद रजु करवामां आव्युं छे. प्रथम गाथामां अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामिने नमस्कार, पछी 11 गाथाओमा आद्यगाथाना विवरणात्मक पुनः शासनना प्रभावक जणावी अद्रबाहुस्वामिना 'बहूभद्र' 'सुभद्र' विगरे. विशेषणा युक्तस्तुति, त्यारबाद आठ गाथामां ए गाथाना दोनुं विवरण, तमने नमस्कार करवानुं कारण, तेनो प्रत्युत्तर, नवमा पूर्वमांथीत्रण छेद सूत्र उद्धत कर्यानो उल्ख, सूगडांगनी पहलां आना अध्ययन- कारण, भावी मुनिओ विरे अनुकंपा, हितवुद्धि, दुःषमकालना प्रभावन वर्णन, सूत्रग्राहकनी योग्यतः, लद्वार, जिनकल्प, स्थविरकल्प, पुलाकादि पांच प्रकारना चरित्र ओ, सामायिकादि चारित्र, मिथ्शत्वना षट्प्रकार, कला शब्दना अनेकार्थो, मनुष्य जीवकल्पना भेदा, दीक्षाने योन, पाल प्रव्रज्याना कान णो, मिष्य चोरोना दोषों, छंदा रोषादि प्रव्रज आदि विषया छ अंन वीस प्रकारना कुलो छल्ले स्थापनाकुलना वर्णन साथे ग्रंथ समाप्त थाय छे. भाष्यमां पांच प्रकार 2-7.50-60-42 प्रकारथी कल्पनु विस्तारथी वर्णन करवामा आव्युं छे. आ बाबत गाथा १७४मां जणाववामां आव्यु छ. . 'विशेषता- तीर्थकरनी स्तुतिने बदले भद्रबाहुस्व मिनीज स्तुति छे. जे एक नविनता, जोके एम करवाना हेतुनो उल्लख गाथामां भाष्यकारे स्वयं कर्यो छ. 1 प्रसंगोपात ए पण जणावू छु के-लघुभाष्य पर रचाएल छे ते पंचकल्प चूर्णिनी जैनानंद एस्तकालय सुरतनी एक प्रतिना पत्रांक 2-1 उपर सिद्धसेन क्षमाश्रमण नामनिर्देशपूर्वक तेमने रचेली एक गाथा 'बालाइयणुकंपा.' चूर्णिकारे जणावी छे. पत्र 5-1Page Navigation
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