Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 4
________________ प्रस्तावना आदि- वर्तमान दृश्यमान जगतना नकशाना विशाल फलक उपर नजर करतां जणाशे के स्थानिक वसती तरीके जैनो हिंदुस्तान सिवाय हालमा क्याय देखाता नथी. भारतमा पण जनोनुं प्रमाण थोडं छे, परंतु विश्वने अपाएल सूक्ष्मतप तत्त्वज्ञान, उच्चतम आदर्शो, कठिनतम आचारी, अन श्रेष्ठतम संस्कृति. आ चार महान् वारसाथी अल्पसंख्य जैनो आजे पण गौरवान्वित छे, अने सदा रहेशे कारण विश्वने अपाएल आ अत्युत्तम वारसो ए अज्ञान अने अशांत जगतने भौगिक विलासना क्रूर पंजामाथी छोडावी निरव शाश्वत शांति रूप आध्यात्मिकताना उच्च शिखर पर स्थापन करवानुं सामर्थ्य धरावे छे. आ सामर्थ्यनी प्रतीती आजे पण थइ शके छे. रहस्य--- सूक्ष्मदृष्टिथी अवलोकन करतां समजाशे के- उपरोक्त वारसामा जे सामर्थ्य रहेल छे, तेनी पश्चाद्भमां एक रहस्य समापलं छे, ते रहस्य ए छे के- आ कल्याणकारी उच्चतम एवा वारमाने विश्व समक्ष सौ प्रथम रजु करनार परमतारक जगत्पूज्य तीर्थकर परमात्माओ छे. आ तीर्थकर परमात्माओ सर्वश हता तेथी जगतना सर्व पदार्थोने यथार्थ रूपे जाणीने अने जोइने पछी जगत् समक्ष रजु कर्यां छे. तेमां तेमना मानसतरंगोने कोई स्थान नथी. तेमज तेओए निर्देशेल आचारोना आदर्शोमां भेदभावनुं पण स्थान नभी, कारण तेओ वीतराग छे. भगवंतो द्वारा निर्दिष्ट सिद्धान्तोमा क्यांय अपूर्णता नथी, कारण तेओर जणावेल मुख्य सिद्धांत अनेकान्तवाद ए सनातन सत्यनी पीठिकाज छे. आ बधुं त्यारे ज समजावी शकाय ज्यारे तेना प्ररूपक सर्वज्ञ होय.

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