Book Title: Panchastikay Padyanuwada evam Tirthankar Stavan Author(s): Ratanchand Bharilla Publisher: Ravindra Patni Family Charitable Trust Mumbai View full book textPage 2
________________ पञ्चास्तिकाय (पद्यानुवाद) शतइन्द्र वन्दित त्रिजगहित निर्मल मधुर जिनके वचन। अनन्त गुणमय भवजयी जिननाथ को शत-शत नमन ॥१॥ सर्वज्ञभाषित भवनिवारक मुक्ति के जो हेतु हैं। उन जिनवचन को नमन कर मैं कहूँ तुम उनको सुनो।।२।। पञ्चास्तिकाय समूह को ही समय जिनवर ने कहा । यह समय जिसमें वर्तता वह लोक शेष अलोक है ।।३।। सत्ता जनम-लय-ध्रौव्यमय अर एक सप्रतिपक्ष है। सर्वार्थ थित सविश्वरूप-रु अनन्त पर्ययवंत है।।८।। जो द्रवित हो अर प्राप्त हो सद्भाव पर्ययरूप में। अनन्य सत्ता से सदा ही वस्तुतः वह द्रव्य है।।९।। सद् द्रव्य का लक्षण कहा उत्पाद व्यय ध्रुव रूप वह । आश्रय कहा है वही जिनने गुणों अर पर्याय का ।।१०।। उत्पाद-व्यय से रहित केवल सत् स्वभावी द्रव्य है। द्रव्य की पर्याय ही उत्पाद-व्यय-ध्रुवता धरे ।।११।। पर्याय विरहित द्रव्य नहीं नहि द्रव्य बिन पर्याय है। श्रमणजन यह कहें कि दोनों अनन्य-अभिन्न हैं ।।१२।। आकाश पुद्गल जीव धर्म अधर्म ये सब काय हैं। ये हैं नियत अस्तित्वमय अरु अणुमहान' अनन्य हैं ।।४।। अनन्यपन धारण करें जो विविध गुण पर्याय से। उन अस्तिकायों से अरे त्रैलोक यह निष्पन्न है ।।५।। त्रिकालभावी परिणमित होते हुए भी नित्य जो। वे पंच अस्तिकाय वर्तनलिंग' सह षट् द्रव्य हैं ।।६।। परस्पर मिलते रहें अरु परस्पर अवकाश दें। जल-दूध बत् मिलते हुए छोड़ें न स्व-स्व भाव को।।७।। १. प्रदेशों में बड़े २. काल द्रव्य । द्रव्य बिन गुण नहीं एवं द्रव्य भी गुण बिन नहीं। वे सदा अव्यतिरिक्त हैं यह बात जिनवर ने कही ।।१३।। स्यात् अस्ति-नास्ति-उभय अर अवक्तव्य वस्तु धर्म हैं। अस्ति-अवक्तव्यादि त्रय सापेक्ष सातों भंग हैं ।।१४।। सत्द्रव्य का नहिं नाश हो अरु असत् का उत्पाद ना। उत्पाद-व्यय होते सतत सब द्रव्य-गुणपर्याय में ।।१५।। जीवादि ये सब भाव हैं जिय चेतना उपयोगमय । देव-नारक-मनुज-तिर्यक् जीव की पर्याय हैं ।।१६।। मनुज मर सुरलोक में देवादि पद धारण करें। पर जीव दोनों दशा में ना नशे ना उत्पन्न हो ।।१७।। (८)Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10