Book Title: Panchastikay Padyanuwada evam Tirthankar Stavan Author(s): Ratanchand Bharilla Publisher: Ravindra Patni Family Charitable Trust Mumbai View full book textPage 7
________________ सक्रिय करण-सह जीव-पुद्गल शेष निष्क्रिय द्रव्य हैं। काल पुद्गल का करण पुद्गल करण है जीव का ।।९८।। हैं जीव के जो विषय इन्द्रिय ग्राह्य वे सब मूर्त हैं। शेष सब अमूर्त हैं मन जानता है उभय को ।।९९।। क्षणिक है व्यवहार काल अरु नित्य निश्चय काल है। परिणाम से हो काल उद्भव काल से परिणाम भी ।।१०।। काल संज्ञा सत प्ररूपक नित्य निश्चय काल है। उत्पन्न-ध्वंसी सतत रह व्यवहार काल अनित्य है।।१०।। जीव पुद्गल धर्म-अधर्म काल अर आकाश जो। हैं 'द्रव्य संज्ञा सर्व की कायत्व है नहिं काल को।।१०२।। (२५) फल जीव और अजीव तद्गत पुण्य एवं पाप है। आसरव संवर निर्जरा अर बन्ध मोक्ष पदार्थ हैं ।।१०८।। संसारी अर सिद्धात्मा उपयोग लक्षण द्विविध । जग जीव वर्ते देह में अर सिद्ध देहातीत है ।।१०९।। भूजल अनल वायु वनस्पति काय जीव सहित कहे। बहु संख्य पर यति मोहयुत स्पर्श ही देती रहें ।।११० ।। उनमें त्रय स्थावर तनु त्रस जीव अग्नि वाय यत ये सभी मन से रहित हैं अर एक स्पर्शन सहित हैं ।।११।। ये पथ्वी कायिक आदिजीव निकाय पाँच प्रकार के। सभी मन परिणाम विरहित जीव एकेन्द्रिय कहे ।।११२।। (२७) इस भाँति जिनध्वनिरूप पंचास्ति प्रयोजन जानकर । जो जीव छोड़े राग-रुष वह छूटता भव दुःख से ।।१०३।। इस शास्त्र के सारांश रूप शुद्धात्मा को जानकर । उसका करे जो अनुसरण, वह शीघ्र मुक्ति वधु वरै ।।१०४।। मुक्तिपद के हेतु से शिरसा नमू महावीर को। पदार्थ के व्याख्यान से प्रस्तुत करूँ शिवमार्ग को ।।१०५।। सम्यक्त्व ज्ञान समेत चारित राग-द्वेष विहीन जो। मुक्ति का मारग कहा भवि जीव हित जिनदेव ने ।।१०६ ।। नव पदों के श्रद्धान को समकित कहा जिनदेव ने। वह ज्ञान सम्यग्ज्ञान अर समभाव ही चारित्र है ।।१०७ ।। (२६) अण्डस्थ अर गर्भस्थ प्राणी ज्ञान शून्य अचेत ज्यों। पंचविध एकेन्द्रि प्राणी ज्ञान शून्य अचेत त्यों ।।११३।। लट केंचुआ अर शंख शीपी आदि जिय पग रहित हैं। वे जानते रस स्पर्श को इसलिये दो इन्द्रि कहे ।।११४।। चींटि-मकड़ी-लीख-खटमल बिच्छु आदिक जंतु जो। फरस रस अरु गंध जाने तीन इन्द्रिय जीव वे ।।११५।। मधुमक्खी भ्रमर पतंग आदि डांस मच्छर जीव जो। वे जानते हैं रूप को भी अतः चौइन्द्रिय कहें।।११६।। भू-जल-गगनचर सहित जो सैनी-असैनी जीव हैं। सुर-नर-नरक तिर्यंचगण ये पंच इन्द्रिय जीव हैं।।११७।। (२८)Page Navigation
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